Friday, August 21, 2009
Sunday, June 21, 2009
पापा misss uuuuuu
क्या कहे पिता के लिए..
जब उनकी याद भी आती है बस आखे नम हों जाती है..
उनकी तरह कोई संभाल नहीं सकता..
जब माँ मुजे उपवास रखवाती थी,और मुझसे भूख सही ना जाती थी,
तो मुजे सब्जी लेने के बहाने ले जाते थे और नास्ता करवा देते थे..
मै कहेती थी."पापा पाप लगेगा,
तो कहेते थे "तुम्हें नहीं लगेगा .मैंने भगवान से सेटिंग कर ली है .मेरी बेटी का उपवास तुड़वाने की सजा मुजे देना.."
मम्मी को खुश रखने के लिए मैंने ऐसे उपवास बहोत किये.."
शादी के बाद एक बार शाम को थोडा अँधेरा होने के बाद मै सब्जी मार्केट में सब्जी ले रही थी..और वहा पापा ने मुजे देख लिया..
मेरे पास आये हाथ पकडा एक ऑटो बुलाया और मेरे घर का रास्ता बताया ..मैंने कहा "पापा मुजे सब्जी लेनी है "...कुछ सूना नहीं और घर भेज दिया...
घर में कैसे समजाऊ सासुजी को और पतिदेव को..
तभी थोडी देर में पापा आये ३ थैली भर के सब्जी लाये ..और मेरे पतिदेव को कहा "मुजे पसंद नहीं मेरी बेटी अँधेरा होने के बाद घर से बहार हों..आगे से उसे मत भेजियेगा.."
पतिदेव समज गये और सॉरी कहा..
फिर मेरे सर पे हाथ रखकर बोले "अभी मै जिंदा हु...एक फोन कर देना.."
जब उनका देहांत हुवा उसके अगले दिन हम दोनों अकेले थे कमरे में..उनको पता चल गया था की अब वो नहीं बचेंगे..
मुजे कहेते है..बच्चा तुम सब यहाँ रहोगे.और मुजे अकेले को ऊपर जाना..कुछ कह ना, ऊपर वाले से अगर तेरी ही सुन ले..
मैंने बहोत कहा उपरवाले से पर उसने नहीं सुनी...
और पापा को अकेले जाना पडा..
"पापा आज कहो कहा फोन करू आपको ..आज भी मुजे बहोत तकलीफ है..कितनी बार आकाश की तरफ देखके चिल्लाती हु पापा मुजे कोई नहीं संभालता आप कहा हों..
पर अब वो भी मेरी फरियाद नहीं सुनते..
बस दुआ करुँगी की आप जहा हों..आपको दुनिया की हर ख़ुशी और सुख मिले..
कभी कभी होता है काश ऊपर भी कंप्यूटर होते ..और उनका भी आईडी होता..और कभी उनके नाम की बाजु में भी हरी लाइट होती..और मै खुश हों जाती की पापा आज on line है..
पर सब हम चाहते है ऐसा नहीं होता है ना..
miss uuu papa
जब उनकी याद भी आती है बस आखे नम हों जाती है..
उनकी तरह कोई संभाल नहीं सकता..
जब माँ मुजे उपवास रखवाती थी,और मुझसे भूख सही ना जाती थी,
तो मुजे सब्जी लेने के बहाने ले जाते थे और नास्ता करवा देते थे..
मै कहेती थी."पापा पाप लगेगा,
तो कहेते थे "तुम्हें नहीं लगेगा .मैंने भगवान से सेटिंग कर ली है .मेरी बेटी का उपवास तुड़वाने की सजा मुजे देना.."
मम्मी को खुश रखने के लिए मैंने ऐसे उपवास बहोत किये.."
शादी के बाद एक बार शाम को थोडा अँधेरा होने के बाद मै सब्जी मार्केट में सब्जी ले रही थी..और वहा पापा ने मुजे देख लिया..
मेरे पास आये हाथ पकडा एक ऑटो बुलाया और मेरे घर का रास्ता बताया ..मैंने कहा "पापा मुजे सब्जी लेनी है "...कुछ सूना नहीं और घर भेज दिया...
घर में कैसे समजाऊ सासुजी को और पतिदेव को..
तभी थोडी देर में पापा आये ३ थैली भर के सब्जी लाये ..और मेरे पतिदेव को कहा "मुजे पसंद नहीं मेरी बेटी अँधेरा होने के बाद घर से बहार हों..आगे से उसे मत भेजियेगा.."
पतिदेव समज गये और सॉरी कहा..
फिर मेरे सर पे हाथ रखकर बोले "अभी मै जिंदा हु...एक फोन कर देना.."
जब उनका देहांत हुवा उसके अगले दिन हम दोनों अकेले थे कमरे में..उनको पता चल गया था की अब वो नहीं बचेंगे..
मुजे कहेते है..बच्चा तुम सब यहाँ रहोगे.और मुजे अकेले को ऊपर जाना..कुछ कह ना, ऊपर वाले से अगर तेरी ही सुन ले..
मैंने बहोत कहा उपरवाले से पर उसने नहीं सुनी...
और पापा को अकेले जाना पडा..
"पापा आज कहो कहा फोन करू आपको ..आज भी मुजे बहोत तकलीफ है..कितनी बार आकाश की तरफ देखके चिल्लाती हु पापा मुजे कोई नहीं संभालता आप कहा हों..
पर अब वो भी मेरी फरियाद नहीं सुनते..
बस दुआ करुँगी की आप जहा हों..आपको दुनिया की हर ख़ुशी और सुख मिले..
कभी कभी होता है काश ऊपर भी कंप्यूटर होते ..और उनका भी आईडी होता..और कभी उनके नाम की बाजु में भी हरी लाइट होती..और मै खुश हों जाती की पापा आज on line है..
पर सब हम चाहते है ऐसा नहीं होता है ना..
miss uuu papa
Friday, June 19, 2009
क्यों कहेते है की प्यार अँधा होता है ?
?हमने तो खुली आखों वाले लोगो को ही प्यार में एक दुसरे के लिए मरते देखा,,,
क्यों कहेते है की दोस्त भी कभी धोखा देते है यारो,
हमें तो धोखेबाज भी दोस्त लगते है यारो
क्यों कहेते है की अपने ,सारे बेगाने बन जाते है हर पल
हम तो वो बने हुवे बेगानों को अपना बंनाने में ही जीवन बिता देना चाहते है
क्यों कहेते है लोग की आसु से दर्द का पता चलता है
हमारी हसी में भी लोग दर्द को भाप लेते है.
नीता कोटेचा ..
?हमने तो खुली आखों वाले लोगो को ही प्यार में एक दुसरे के लिए मरते देखा,,,
क्यों कहेते है की दोस्त भी कभी धोखा देते है यारो,
हमें तो धोखेबाज भी दोस्त लगते है यारो
क्यों कहेते है की अपने ,सारे बेगाने बन जाते है हर पल
हम तो वो बने हुवे बेगानों को अपना बंनाने में ही जीवन बिता देना चाहते है
क्यों कहेते है लोग की आसु से दर्द का पता चलता है
हमारी हसी में भी लोग दर्द को भाप लेते है.
नीता कोटेचा ..
तुमसे करीब रह कर मै दूर हु तुमसे..
और उससे दूर रहेकर मै करीब हु उससे ..
ये दीवानगी कहो या कहो पागलपन..
ना हम तुम्हारे हों सके ना उसके हों सके...
वो मेरी सासों को छु सकता है...
और तुम मेरे दिल को..
पर ना हम उसके हों सके कभी..
और ना तुम्हें पा सके कभी..
वो मुजे पा कर मेरा ना हों सका.
और तुम दुसरो की अमानत हों फिर भी मुझसे दूर ना हों सके..
चलो अब सिकवा छोड़ दिया है ,
और छोड़ दी है शिकायत करनी...
मै उसकी ना हों सकी..
और तुम मेरे ना हों सके..
तो भी गम नहीं अब...
क्योकि हम तो है सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे हमेशा के लिए...
नीता कोटेचा..
और उससे दूर रहेकर मै करीब हु उससे ..
ये दीवानगी कहो या कहो पागलपन..
ना हम तुम्हारे हों सके ना उसके हों सके...
वो मेरी सासों को छु सकता है...
और तुम मेरे दिल को..
पर ना हम उसके हों सके कभी..
और ना तुम्हें पा सके कभी..
वो मुजे पा कर मेरा ना हों सका.
और तुम दुसरो की अमानत हों फिर भी मुझसे दूर ना हों सके..
चलो अब सिकवा छोड़ दिया है ,
और छोड़ दी है शिकायत करनी...
मै उसकी ना हों सकी..
और तुम मेरे ना हों सके..
तो भी गम नहीं अब...
क्योकि हम तो है सिर्फ तुम्हारे और तुम्हारे हमेशा के लिए...
नीता कोटेचा..
गम भरी जिन्दगी में अगर एक ख़ुशी भी मिल जाये ,
लगता है जैसे जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
दोस्त अगर दोस्ती निभाने के अलावा,
अगर थोडा सा प्यार कर ले ..
तो लगता है जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
हम तो चाहते है पूरी दुनिया को दिल से,
कोई हमें भी चाहेगा ,
तो लगेगा जैसे जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
हम तो उन्हें याद करते है हर पल..
अगर उन्हें कभी हमारी याद आ जाये ,
तो समजेंगे की जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
नीता कोटेचा..
लगता है जैसे जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
दोस्त अगर दोस्ती निभाने के अलावा,
अगर थोडा सा प्यार कर ले ..
तो लगता है जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
हम तो चाहते है पूरी दुनिया को दिल से,
कोई हमें भी चाहेगा ,
तो लगेगा जैसे जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
हम तो उन्हें याद करते है हर पल..
अगर उन्हें कभी हमारी याद आ जाये ,
तो समजेंगे की जिन्दगी ने थोडी सी करवट बदल ली..
नीता कोटेचा..
संमदर के किनारे मै आज जब बैठती हु..
लहेरो की आवाज में तेरा नाम सुनाई देता है..
जो लहेरो में साथ में मिल कर भीगते थे हम,
आज वो लहेरे हमें अकेले देख कर उदास हों जाती है...
जब साथ में अपना नाम हम लिखते थे रेत में...
और लहेरे आके वो दोनों नाम खुद में समां लेती थी..
आज वो ही लहेरे हमें अकेला देख कर..
तेरा नाम मुजे वापस दे जाती है...
नीता कोटेचा.
लहेरो की आवाज में तेरा नाम सुनाई देता है..
जो लहेरो में साथ में मिल कर भीगते थे हम,
आज वो लहेरे हमें अकेले देख कर उदास हों जाती है...
जब साथ में अपना नाम हम लिखते थे रेत में...
और लहेरे आके वो दोनों नाम खुद में समां लेती थी..
आज वो ही लहेरे हमें अकेला देख कर..
तेरा नाम मुजे वापस दे जाती है...
नीता कोटेचा.
तेरी मेरी दोस्ती की बाते कितनी करू..
तेरे नाराज होने के किस्से, किससे कहू...
ए दोस्त तुजे तो पता भी नहीं था ..
पर तेरे नाराज होने से मेरा दिल बहोत रोता था..
वो मेरे जज्बात की बाते अब किससे कहू..
तू जब मेरा अपना था..
तब तू कितना पास था...
आज जब तू बेगाना है..
फिर तू और ज्यादा पास है..
ये दिल की अजीब हालत की बाते, बता मै किस्स्से कहू ..
जा तू नाराज तो नाराज सही..
तू दूर तो दूर ही सही...
आज भी मेरे दिल के सिहासन पे तुम ही बैठो हों...
वो बाते वा हालत बता मै किस्से कहू...
नीता कोटेचा
तेरे नाराज होने के किस्से, किससे कहू...
ए दोस्त तुजे तो पता भी नहीं था ..
पर तेरे नाराज होने से मेरा दिल बहोत रोता था..
वो मेरे जज्बात की बाते अब किससे कहू..
तू जब मेरा अपना था..
तब तू कितना पास था...
आज जब तू बेगाना है..
फिर तू और ज्यादा पास है..
ये दिल की अजीब हालत की बाते, बता मै किस्स्से कहू ..
जा तू नाराज तो नाराज सही..
तू दूर तो दूर ही सही...
आज भी मेरे दिल के सिहासन पे तुम ही बैठो हों...
वो बाते वा हालत बता मै किस्से कहू...
नीता कोटेचा
तेरे दिल में रहेने की आरजू थी मेरी..
तेरे करीब रहेने की आरजू थी मेरी ..
तू तू ना रहा..
मै मै ना रही..
तू बेगाना हों गया..
मै किसीकी ना हों सकी...
जा रे दोस्त तुजसे क्यों कहेती हु मै दिल की बाते...
तू प्रेमी ना रहा मेरा..
और ना ही बेवफा बना मेरा..
तुजे बददुआ भी कैसे दू मेरे दोस्त...
क्योकि भले तू ना रहा मेरा..
पर मै तेरी रही हर पल...
नीता कोटेचा
तेरे करीब रहेने की आरजू थी मेरी ..
तू तू ना रहा..
मै मै ना रही..
तू बेगाना हों गया..
मै किसीकी ना हों सकी...
जा रे दोस्त तुजसे क्यों कहेती हु मै दिल की बाते...
तू प्रेमी ना रहा मेरा..
और ना ही बेवफा बना मेरा..
तुजे बददुआ भी कैसे दू मेरे दोस्त...
क्योकि भले तू ना रहा मेरा..
पर मै तेरी रही हर पल...
नीता कोटेचा
तेरे दिल में रहेने की आरजू थी मेरी..
तेरे करीब रहेने की आरजू थी मेरी ..
तू तू ना रहा..
मै मै ना रही..
तू बेगाना हों गया..
मै किसीकी ना हों सकी...
जा रे दोस्त तुजसे क्यों कहेती हु मै दिल की बाते...
तू प्रेमी ना रहा मेरा..
और ना ही बेवफा बना मेरा..
तुजे बद्दुआ भी कैसे दू मेरे दोस्त...
क्योकि भले तू ना रहा मेरा..
पर मै तेरी रही हर पल...
नीता कोटेचा
तेरे करीब रहेने की आरजू थी मेरी ..
तू तू ना रहा..
मै मै ना रही..
तू बेगाना हों गया..
मै किसीकी ना हों सकी...
जा रे दोस्त तुजसे क्यों कहेती हु मै दिल की बाते...
तू प्रेमी ना रहा मेरा..
और ना ही बेवफा बना मेरा..
तुजे बद्दुआ भी कैसे दू मेरे दोस्त...
क्योकि भले तू ना रहा मेरा..
पर मै तेरी रही हर पल...
नीता कोटेचा
Thursday, June 4, 2009
Monday, June 1, 2009
Thursday, May 21, 2009
आज भी माँ मुजे डाटती है...
अगर आज भी मै गलत दोस्तों के साथ बात करू मुजे वो उसकी नजरो से डाटती है..
आज भी अगर मै घर में कुछ बोलू वो मुजे बाजु में बिठाकर डाटती है..
आज भी अगर मै मेरे बच्चो को गुस्सा करू , तो मुजे मेरा बचपन याद दिलाकर डाटती है..
कुछ होता है अजीब अगर जिन्दगी में ..मै आज भी चली जाती हु उसके पास..
पता है पहेले डाट पड़ेगी..पर फिर मिलेगा दुलार..
बस माँ ये डाट मेरे पर कायम रखना..
तभी मै सही जिन्दगी जी पाती हु..
नीता कोटेचा
अगर आज भी मै गलत दोस्तों के साथ बात करू मुजे वो उसकी नजरो से डाटती है..
आज भी अगर मै घर में कुछ बोलू वो मुजे बाजु में बिठाकर डाटती है..
आज भी अगर मै मेरे बच्चो को गुस्सा करू , तो मुजे मेरा बचपन याद दिलाकर डाटती है..
कुछ होता है अजीब अगर जिन्दगी में ..मै आज भी चली जाती हु उसके पास..
पता है पहेले डाट पड़ेगी..पर फिर मिलेगा दुलार..
बस माँ ये डाट मेरे पर कायम रखना..
तभी मै सही जिन्दगी जी पाती हु..
नीता कोटेचा
अचानक कोई सामने से आके हस देता है..ना जान ना पहेचान...अचानक कभी कोई मदद कर देता है...जब हम कोई टिकिट की बड़ी सी लम्बी कतार में खड़े हों और अचानक कोई आ कर कहे हमें, की मैंने ये कूपन लिया है ज्यादा है क्या आपको चाहिए... कभी कोए आ कर कहेता है की मुझे ऐसा क्यों लगता है की मैंने आपको कही देखा हुवा ऐसा महेसुस होता है...और हमारे दिल के तार भी हिल जाते है॥कभी कुछ काम कर रहे हों तो ऐसा होता है की ये काम हमने पहेले भी तो किया हुवा है...कभी कोई ऐसी जगह पे जहा हम जाते है जहा पहेली ही बार गये हों पर ऐसा लगता है मै याहा आ गई हु पहेले ... पहेले नेट का कोई विश्व था ऐसा हमें पता नहीं था..पर अब ऑनलाइन हमारे बहोत सारे दोस्त है..ऑरकुट में लाखो लोग है..हम क्यों उसमे से १०० को अपना बनाते है..और उसमे से भी क्यों हम सिर्फ १० से महोब्बात करने लगते है...उसके दुःख से हम दुखी होते है..और उसके सुख से हम सुखी होते है..क्यों एक ही के घर में रह रहे लोग एक दुसरे से बहोत दूर होते है और बहोत दूर रहेने वाले लोग दिल के करीब होते है.. क्या आपको इससे सवाल नहीं होते दिल में ऐसा क्यों होता है हमारे साथ ??
क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..और कोई पराया..क्या इसमें कही कोई जन्म की लेनदेन बाकि रह गई होती है...मै ये मानती हु की हा ऐसा ही है..हमारा अगर किसी जनम का लेनदेन बाकी हों तो ही हम एक दुसरे के सामने मुस्करा लेते है...नहीं तो मुस्कराना भी मुश्किल होता है..तो मै मानती हु की हा कुछ है जिसे हम पुनर्जनम कह सकते है...क्या आप मानते है??
क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..और कोई पराया..क्या इसमें कही कोई जन्म की लेनदेन बाकि रह गई होती है...मै ये मानती हु की हा ऐसा ही है..हमारा अगर किसी जनम का लेनदेन बाकी हों तो ही हम एक दुसरे के सामने मुस्करा लेते है...नहीं तो मुस्कराना भी मुश्किल होता है..तो मै मानती हु की हा कुछ है जिसे हम पुनर्जनम कह सकते है...क्या आप मानते है??
स्त्री ?? ये कौन से प्राणी का नाम है..हा वही ना जो अपना निर्णय भी खुद ले नहीं सकती...वो ही ना जो अपने वजूद के लिए लड़ भी नहीं सकती...और वो ही ना जो ये आजाद देश की गुलाम है...हा इसे तो कही देखा है..घर के कपडे धोते हुवे...४० सल् शादी को हो जाये फिर भी मईके के नाम से गाली खाते हुवे...उसे कहा शर्म और अपनी इज्जत की कुछ रक्षा करनी आती ही है..वो दुसरो के सामने सर उठाकर जीती है ..पर अपने ही .घर वालो के सामने सर जुकाकर जीती है..रोज उसकी वासना का शिकार बनती है रोज सास की गलिया खाती है...पर फिर भी उसीके साथ जीती है...क्योकि माता पिता तो रखेंगे नहीं और यहाँ भी उसका .घर थोडी है ये तो ये सास का है या पति का..उसका तो कुछ भी नहीं..ना बच्चों के पीछे उसका नाम लगता है..
पर अपना भारत देश महान है यहाँ तो सती सावित्री ने जनम लिया था..और सब पतियों को सावित्री ही चाहिए..और सावित्री बनने की कोशिष में वो अपना आखरी सास ले के मर jati है..बात ख़तम स्त्री नाम के प्राणी की...
पर अपना भारत देश महान है यहाँ तो सती सावित्री ने जनम लिया था..और सब पतियों को सावित्री ही चाहिए..और सावित्री बनने की कोशिष में वो अपना आखरी सास ले के मर jati है..बात ख़तम स्त्री नाम के प्राणी की...
Tuesday, May 19, 2009
प्यार में अगर वो जीते तो हम उनकी दोस्ती से भरपूर होंगे...
और अगर हम हारे तो हमारे प्यार को वो तरसेंगे...
अगर हम जीते तो उनकी हार होने न देंगे...
और अगर वो हारे तो उनको हम सजा के रखेंगे हमारे दिल में...
प्यार में ना हार होती है न जित..
YE तो वो खजाना है जो देने से बढ़ता है ..
तो कोई दे चाहे ना दे बस सब को प्यार देते चेलो...
नीता कोटेचा..
और अगर हम हारे तो हमारे प्यार को वो तरसेंगे...
अगर हम जीते तो उनकी हार होने न देंगे...
और अगर वो हारे तो उनको हम सजा के रखेंगे हमारे दिल में...
प्यार में ना हार होती है न जित..
YE तो वो खजाना है जो देने से बढ़ता है ..
तो कोई दे चाहे ना दे बस सब को प्यार देते चेलो...
नीता कोटेचा..
शिकायत करनी न आई तो लोगो ने समजा दर्द नहीं है..
और आसु में हम खुद को डुबोते चले गये..
naa उन्हें पता चला की हम तड़पते है उनके लिए ...
और naa हमने बताना जरुरी समजा..
क्यों khuch बोलके बताये की ,कितना प्यार है हमें तुमसे..
हमारे जनाजे पे आके देख लेना..
वहा भी तुम्हें हमारे प्यार का अहेसास मिल ही जायेगा..
नीता कोटेचा.
और आसु में हम खुद को डुबोते चले गये..
naa उन्हें पता चला की हम तड़पते है उनके लिए ...
और naa हमने बताना जरुरी समजा..
क्यों khuch बोलके बताये की ,कितना प्यार है हमें तुमसे..
हमारे जनाजे पे आके देख लेना..
वहा भी तुम्हें हमारे प्यार का अहेसास मिल ही जायेगा..
नीता कोटेचा.
Saturday, May 9, 2009
ओह मम्मी मुजे माफ़ कर देना..
एक बार तुम रो रही थी...
क्योकि मैंने तुम्हें जोर से कुछ कह दिया था..
पर तुम तो अपना अपना काम करते करते चुपचाप रो रही थी...
मुजे पता भी चलने नहीं दिया था...
और अचानक मै आई वहा पानी पिने..
तो देखा तो तुम्हारी आखों से अश्रु बहे जा रहे थे..
मैंने पूछा मम्मी क्यों रो रही हों??
तो तुमने कहा , नीता अगर मेरा बच्चा मुजे जोर से कुछ कहेगा तो कैसे सहु ??
मुजे बहोत दुःख हुवा की मैंने मम्मी को रुलाया..
मै उसके गले लग गई और कहा अरे मुजे डाट दिया होता..
तो मम्मी ने सिर पे हाथ घुमाते हुवे कहा.. मै जोर से तुम्हें कुछ कहेती तो क्या तुम्हें दुःख नहीं होता..
ओह मम्मी मुजे माफ़ कर देना..
मै आज भी वो दिन याद करके रो पड़ती हु...
नीता कोटेचा..
क्योकि मैंने तुम्हें जोर से कुछ कह दिया था..
पर तुम तो अपना अपना काम करते करते चुपचाप रो रही थी...
मुजे पता भी चलने नहीं दिया था...
और अचानक मै आई वहा पानी पिने..
तो देखा तो तुम्हारी आखों से अश्रु बहे जा रहे थे..
मैंने पूछा मम्मी क्यों रो रही हों??
तो तुमने कहा , नीता अगर मेरा बच्चा मुजे जोर से कुछ कहेगा तो कैसे सहु ??
मुजे बहोत दुःख हुवा की मैंने मम्मी को रुलाया..
मै उसके गले लग गई और कहा अरे मुजे डाट दिया होता..
तो मम्मी ने सिर पे हाथ घुमाते हुवे कहा.. मै जोर से तुम्हें कुछ कहेती तो क्या तुम्हें दुःख नहीं होता..
ओह मम्मी मुजे माफ़ कर देना..
मै आज भी वो दिन याद करके रो पड़ती हु...
नीता कोटेचा..
Saturday, April 11, 2009
ऑरकुट के मित्र..
http://www.orkut.co.in/Main#Profile.aspx?uid=११३१९८९०३४९३००४१४५०१
ये है MR.ARVIND की प्रोफाइल ..जो मेरे लिए अजनबी है..जिनको मई न कभी मिली.हु और ना बहोत पुरानी दोस्ती है हमारी..पर मेरा ब्लॉग पढ़ा तो उन्होंने उसमे यशोदा पालन का लेख पढ़ा ..और उन्होंने ३००० rs भेज दिए ..सिर्फ़ ब्लॉग की bat पढ़कर ..इतना भरोसा..बहोत ज्यादा है न ....पर उन्होंने किया..और हम उनका शुक्रिया अदा करते है..जिससे यशोदा जी को बहोत मदद मिली..और अरविंद जी को बहोत आशीर्वाद..
नीता कोटेचा..
ये है MR.ARVIND की प्रोफाइल ..जो मेरे लिए अजनबी है..जिनको मई न कभी मिली.हु और ना बहोत पुरानी दोस्ती है हमारी..पर मेरा ब्लॉग पढ़ा तो उन्होंने उसमे यशोदा पालन का लेख पढ़ा ..और उन्होंने ३००० rs भेज दिए ..सिर्फ़ ब्लॉग की bat पढ़कर ..इतना भरोसा..बहोत ज्यादा है न ....पर उन्होंने किया..और हम उनका शुक्रिया अदा करते है..जिससे यशोदा जी को बहोत मदद मिली..और अरविंद जी को बहोत आशीर्वाद..
नीता कोटेचा..
Wednesday, April 8, 2009
Monday, March 30, 2009
सबसे पहेली बात मै ये कहेना चाहूंगी की मेरी हिंदी ज्यादा अच्छी नही है..पर मेरे हिंदी भाषी दोस्तों ने कहा की नीता तुम्हारी कहनिया हम कैसे पढ़ सकेंगे ,हमें तो गुजराती आती ही नही ..तो अगर तुम उसे हिंदी में लीखो तो ज्यादा बहेतर होगा..तो आज पहेली बार कोशीश कर रही हु ..तो अगर ग़लत हिंदी हो तो मुझे क्षमा कर दीजियेगा
और उसे थोडा बरोबर करके पढियेगा॥[:)]
और दूसरी बात मेरी सारी बाते सत्य बात होती है..कोई काल्पनिक बातो को मै नही लिख सकती..सब देखी हुई बातें है..ये भी एक सत्य बात ही रजु की हुई है..
१)
"हे भगवान आज वापस जगडे ,पता नही ये दोनों को क्या है ??ना उपरवाले ने बच्चे दिए है की उनके कारण कभी जगडे हो ..पर ये दोनों अकेले रहेते है..पर शाँति से जी नही सकते."वनिता ने अपने पति अमर को कहा..
"अरे पर तुम्हे क्या? देखना अभी थोडी देर में भाभी यहाँ आयेंगे और क्या क्या हुवा उनके घर में वो सब तुम्हे बताएँगे..नही तो उन्हें भी कहा तब तक शाँति मिलेगी "वनिता के पति अमर ने कहा..
और वो ही हुवा ..दस मिनिट में भारती भाभी आए ..और वनिता के बाजू में बैठके रोने लगे ॥
वनिता ने कहा' भाभी रोइए मत ॥ तुम्हे तो मालुम है न की शैलेश भाई के मन में कुछ नही होता..रातको घर पे आयेंगे तब उन्हें तो यादा भी नही होगा। की सुबह जगडा हुवा था॥"
तभी भारती भाभी ने कहा"हां वनीता ठीक है ,उनको याद नही रहेता..पर रोज ऑफिस जाते वकत वो जगडा करके जाते है..और ख़ुद तो रातको हसते हुवे आयेंगे पर मै पूरा दिन वो ही खयालो में बिताती हु..और जान जलाती रहेती हु..कब वो सुधरेंगे वनीता॥"
वापस वनीता ने उन्हें समाजाने की कोशिश की "भाभी देखिये ,आदमी लोग भी तो पूरा घर चलाते है..पुरी जिंदगी बहार काम करने जाते है,उनको कैसे कैसे लोगो से बातें सुननी पड़ती है..तो अब वो गुस्सा घर वालो पे ही निकालेंगे..हमें कहा ज्यादा देर उनका गुस्सा सहेना है..देखो अभी चले गए तो रातको आएंगे..भूल जाइए ..और चलो अभी मै आती हु आपके घर में ,साथ में मिल के खाना खाते है॥"
इस बिच अमर एक ग्लास पानी भरके भारती भाभी को दे के गया..और वनीता के सामने चोरी से थोडा हस ही लिया..क्योकि ये रोज का क्रम ही हो गया था सब कुछ...
भारती भाभी घर पे गए ..और थोडी देर में वनीता के घर का फोन बजा।
वनीता ने फोन उठाया ..तो सामने शैलेश भाई थे.शैलेश ने कहा "क्या भाभी ,वनीता का प्रोग्राम ख़तम हुवा की नही..गई वो घर पे..अगर आपके घर में है तो कुछ मत बोलिएगा..मै बाद में फोन करूँगा..."और शैलेश भाई हस रहे थे॥"
वनीता ने कहा "क्यों शैलेश भाई आप उसे रोज परेशान करके जाते हो और ऊपर से हस रहे हो..यहाँ उनकी जान निकल जाती है रो रो के..मै ही आज आपको फोन करने वाली थी.. "
अभी तक शैलेश जो हस रहा था, वो अचानक चुप हो गया ..और उसने कहा.."भाभी ,अगर मै उससे जगडा करके नही जाउंगा.तो भी वो रोने वाली तो है ही..वो हमें बच्चे नही है उसके लिए रोएगी..ये तो मै जगडा करके जाता हु तो कमसेकम विषय तो बदली होता है..वो कारण से रोए.. इससे अच्छा है मेरे जगडे के कारण रोए....मै तो रातको आके मना ही लूँगा न उसे..चलो अब मै फोन रखता हु, जरा उसे संभालना.."
और सामने से फोन बंध हो गया..
और वनीता सोच में पड गई की शैलेश भाई कितना प्यार करते है भाभी से ,कितना दूर का सोचते है..मुझे तो ये ख़याल भी नही आया॥
ऐसे ही भारती को सँभालते संभालते शाम हो गई ..सब अपने काम में व्यस्त हो गए।
रात को ८ बजे भारती भाभी आए ..और वनीता से कहा देखो देखो...आज तुम्हारे भाई साहेब हमारे लिए कितनी प्यारी सारी ले के आए..और जैसे सुबह कुछ हुवा ही नही था इस तरह से वो वनीता से बाते करने लगी॥
और वनीता भी दिल में मुस्करा रही थी।और सोच रही थी की ये कैसा संसार है..कभी हमें उसी आदमी के लिए ये ख़याल आते है की हम क्यों जीते है इसके साथ।?? और कभी वो ही आदमी हमें कितना संभालता है..कितनी बार हमारी सोच बदलती है..
ऐसे ही दुसरे ६ महीने बीत गए।
एक बार रातको १ बजे अचानक जोर जोर से बेल बजने की आवाज आई ..वनीता और अमर भी डर गए की ये वक्त कौन आ सकता है..दोनों ने दरवाजा खोला.तो भारती भाभी रोते रोते खड़े थे..और बोल रहे थे "वनीता जल्दी चलो तुम्हारे भाई को कुछ हो गया है॥"
वनीता और अमर दौड़ के उनके साथ गए॥
वहा जाके देखा तो शैलेश भाई जमीन पे गीरे हुवे थे।
उन्होंने तुंरत डॉ। को फोन किया..और डॉ। ने आके कहा की "शैलेश भाई अब इस दुनिया में नही रहे.. "
और भारती भाभी पे तो जैसे आसमान टूट पडा..उनको संभाला नही जा रहा था वनीता से॥
भारती भाभी रोते रोते बोल रहे थे की वनीता इनसे कहो की मेरे साथ जगडा करे..ऐसे चुप ना रहे॥
मै नही जी सकती इनके जगडे के बिना॥
वनीता को पता नही चल रहा था की कैसे संभाले .. भारती भाभी को॥
अमर ने उनके सब रिश्तेदारो को फोन किया.सब को आते आते सुबह हो गई.
मुशकिल से भारती भाभी ने शैलेश भाई की अंतिम यात्रा निकालने दी.
पर अभी भी भारती भाभी एक ही बात बोल रहे थे ..वनीता अब मै कैसे जीयूँगी उनके बिना.कौन मेरे साथ जगडा करेगा..और कौन मुझे प्यार करेगा॥
वनीता से उनकी बातें बर्दास्त नही हो रही थी..और साथ में शैलेश भाई ने जो उसे फोन पे बताया था.वो सब याद आ रहा था ..
वो दूसरी रात वनीता ने सोचा की आज इनके पास ही सो जाती हु..और वो भारती भाभी के घर ही रुक गई॥
सुबह वो उठी तो अभी भरती भाभी सो रहे थे..तो उसने सोचा चलो मै थोड़ा कम करके आऊ घर का..फ़िर वापस आती हु और भाभी के साथ ही रहूंगी...
और वनीता अपने घर गई..करीब १ गंटे बाद वो वापस आई तो देखा की भारती भाभी अभी भी सो रहे थे॥
अब उसे लगा उनको उठा देना चाहिए॥
और वो उनको उठाने उनके करीब गई..और जैसे उसने भारती भाभी को छुवा ..उनका बदन एकदम ठंडा था।
वो एक रात भी शैलेश भाई के बिना नही काट सके..
और उसे थोडा बरोबर करके पढियेगा॥[:)]
और दूसरी बात मेरी सारी बाते सत्य बात होती है..कोई काल्पनिक बातो को मै नही लिख सकती..सब देखी हुई बातें है..ये भी एक सत्य बात ही रजु की हुई है..
१)
"हे भगवान आज वापस जगडे ,पता नही ये दोनों को क्या है ??ना उपरवाले ने बच्चे दिए है की उनके कारण कभी जगडे हो ..पर ये दोनों अकेले रहेते है..पर शाँति से जी नही सकते."वनिता ने अपने पति अमर को कहा..
"अरे पर तुम्हे क्या? देखना अभी थोडी देर में भाभी यहाँ आयेंगे और क्या क्या हुवा उनके घर में वो सब तुम्हे बताएँगे..नही तो उन्हें भी कहा तब तक शाँति मिलेगी "वनिता के पति अमर ने कहा..
और वो ही हुवा ..दस मिनिट में भारती भाभी आए ..और वनिता के बाजू में बैठके रोने लगे ॥
वनिता ने कहा' भाभी रोइए मत ॥ तुम्हे तो मालुम है न की शैलेश भाई के मन में कुछ नही होता..रातको घर पे आयेंगे तब उन्हें तो यादा भी नही होगा। की सुबह जगडा हुवा था॥"
तभी भारती भाभी ने कहा"हां वनीता ठीक है ,उनको याद नही रहेता..पर रोज ऑफिस जाते वकत वो जगडा करके जाते है..और ख़ुद तो रातको हसते हुवे आयेंगे पर मै पूरा दिन वो ही खयालो में बिताती हु..और जान जलाती रहेती हु..कब वो सुधरेंगे वनीता॥"
वापस वनीता ने उन्हें समाजाने की कोशिश की "भाभी देखिये ,आदमी लोग भी तो पूरा घर चलाते है..पुरी जिंदगी बहार काम करने जाते है,उनको कैसे कैसे लोगो से बातें सुननी पड़ती है..तो अब वो गुस्सा घर वालो पे ही निकालेंगे..हमें कहा ज्यादा देर उनका गुस्सा सहेना है..देखो अभी चले गए तो रातको आएंगे..भूल जाइए ..और चलो अभी मै आती हु आपके घर में ,साथ में मिल के खाना खाते है॥"
इस बिच अमर एक ग्लास पानी भरके भारती भाभी को दे के गया..और वनीता के सामने चोरी से थोडा हस ही लिया..क्योकि ये रोज का क्रम ही हो गया था सब कुछ...
भारती भाभी घर पे गए ..और थोडी देर में वनीता के घर का फोन बजा।
वनीता ने फोन उठाया ..तो सामने शैलेश भाई थे.शैलेश ने कहा "क्या भाभी ,वनीता का प्रोग्राम ख़तम हुवा की नही..गई वो घर पे..अगर आपके घर में है तो कुछ मत बोलिएगा..मै बाद में फोन करूँगा..."और शैलेश भाई हस रहे थे॥"
वनीता ने कहा "क्यों शैलेश भाई आप उसे रोज परेशान करके जाते हो और ऊपर से हस रहे हो..यहाँ उनकी जान निकल जाती है रो रो के..मै ही आज आपको फोन करने वाली थी.. "
अभी तक शैलेश जो हस रहा था, वो अचानक चुप हो गया ..और उसने कहा.."भाभी ,अगर मै उससे जगडा करके नही जाउंगा.तो भी वो रोने वाली तो है ही..वो हमें बच्चे नही है उसके लिए रोएगी..ये तो मै जगडा करके जाता हु तो कमसेकम विषय तो बदली होता है..वो कारण से रोए.. इससे अच्छा है मेरे जगडे के कारण रोए....मै तो रातको आके मना ही लूँगा न उसे..चलो अब मै फोन रखता हु, जरा उसे संभालना.."
और सामने से फोन बंध हो गया..
और वनीता सोच में पड गई की शैलेश भाई कितना प्यार करते है भाभी से ,कितना दूर का सोचते है..मुझे तो ये ख़याल भी नही आया॥
ऐसे ही भारती को सँभालते संभालते शाम हो गई ..सब अपने काम में व्यस्त हो गए।
रात को ८ बजे भारती भाभी आए ..और वनीता से कहा देखो देखो...आज तुम्हारे भाई साहेब हमारे लिए कितनी प्यारी सारी ले के आए..और जैसे सुबह कुछ हुवा ही नही था इस तरह से वो वनीता से बाते करने लगी॥
और वनीता भी दिल में मुस्करा रही थी।और सोच रही थी की ये कैसा संसार है..कभी हमें उसी आदमी के लिए ये ख़याल आते है की हम क्यों जीते है इसके साथ।?? और कभी वो ही आदमी हमें कितना संभालता है..कितनी बार हमारी सोच बदलती है..
ऐसे ही दुसरे ६ महीने बीत गए।
एक बार रातको १ बजे अचानक जोर जोर से बेल बजने की आवाज आई ..वनीता और अमर भी डर गए की ये वक्त कौन आ सकता है..दोनों ने दरवाजा खोला.तो भारती भाभी रोते रोते खड़े थे..और बोल रहे थे "वनीता जल्दी चलो तुम्हारे भाई को कुछ हो गया है॥"
वनीता और अमर दौड़ के उनके साथ गए॥
वहा जाके देखा तो शैलेश भाई जमीन पे गीरे हुवे थे।
उन्होंने तुंरत डॉ। को फोन किया..और डॉ। ने आके कहा की "शैलेश भाई अब इस दुनिया में नही रहे.. "
और भारती भाभी पे तो जैसे आसमान टूट पडा..उनको संभाला नही जा रहा था वनीता से॥
भारती भाभी रोते रोते बोल रहे थे की वनीता इनसे कहो की मेरे साथ जगडा करे..ऐसे चुप ना रहे॥
मै नही जी सकती इनके जगडे के बिना॥
वनीता को पता नही चल रहा था की कैसे संभाले .. भारती भाभी को॥
अमर ने उनके सब रिश्तेदारो को फोन किया.सब को आते आते सुबह हो गई.
मुशकिल से भारती भाभी ने शैलेश भाई की अंतिम यात्रा निकालने दी.
पर अभी भी भारती भाभी एक ही बात बोल रहे थे ..वनीता अब मै कैसे जीयूँगी उनके बिना.कौन मेरे साथ जगडा करेगा..और कौन मुझे प्यार करेगा॥
वनीता से उनकी बातें बर्दास्त नही हो रही थी..और साथ में शैलेश भाई ने जो उसे फोन पे बताया था.वो सब याद आ रहा था ..
वो दूसरी रात वनीता ने सोचा की आज इनके पास ही सो जाती हु..और वो भारती भाभी के घर ही रुक गई॥
सुबह वो उठी तो अभी भरती भाभी सो रहे थे..तो उसने सोचा चलो मै थोड़ा कम करके आऊ घर का..फ़िर वापस आती हु और भाभी के साथ ही रहूंगी...
और वनीता अपने घर गई..करीब १ गंटे बाद वो वापस आई तो देखा की भारती भाभी अभी भी सो रहे थे॥
अब उसे लगा उनको उठा देना चाहिए॥
और वो उनको उठाने उनके करीब गई..और जैसे उसने भारती भाभी को छुवा ..उनका बदन एकदम ठंडा था।
वो एक रात भी शैलेश भाई के बिना नही काट सके..
शिकायत करनी न आई तो लोगो ने समजा दर्द नहीं है..
और आसु में हम खुद को डुबोते चले गये..
ना उन्हें पता चला की हम तड़पते है उनके लिए ...
और naa हमने बताना जरुरी समजा..
क्यों कुछ बोलके बताये की ,कितना प्यार है हमें तुमसे..
हमारे जनाजे पे आके देख लेना..
वहा भी तुम्हें हमारे प्यार का अहेसास मिल ही जायेगा..
नीता कोटेचा.
और आसु में हम खुद को डुबोते चले गये..
ना उन्हें पता चला की हम तड़पते है उनके लिए ...
और naa हमने बताना जरुरी समजा..
क्यों कुछ बोलके बताये की ,कितना प्यार है हमें तुमसे..
हमारे जनाजे पे आके देख लेना..
वहा भी तुम्हें हमारे प्यार का अहेसास मिल ही जायेगा..
नीता कोटेचा.
Tuesday, March 10, 2009
मेरी माँ
मैंने एक बार माँ से कहा :माँ मुझे अपनी गोद में सुला लो..
मै थक गई यहाँ की मतलबी दुनिया से और मतलबी लोगो से.."
तो माँ ने कहा"बेटा, ये तो वो लोग है जो जिन्दगी जीना सिखाते है..
मै कैसे तुम्हें उनसे दूर रखु..तुम फिर कभी लड़ ना पोगी.."
तो मैंने कहा "माँ मुझे नहीं लड़ना इन लोगो से जो मेरे नहीं है पर मेरे होने का अहेसास जताते है.."
तो माँ ने कहा" ये अहेसास ही काफी है, यहाँ तो लोगो को मतलबी लोग भी नहीं मीलते..
तुम जियो इन्ही के बिचमे..
तब ही तुम सिख पोगी दुनिया में जीना.."
मै नाराज़ हो के चल रही थी तब माँ ने कहा..
"जाओ मत दो पल सो जाओ मेरी गोद में..इससे तुमसे ज्यादा मुझे सुकून मिलेगा..मै मतलबी नहीं ..मै तो एक ऐसी इन्सान हु तुम्हारी जिन्दगी की जो हर बार मुश्किलों में सर पे हाथ रखकर मुश्किलों से लड़ना सिखायेगी.."
और माँ देखो ,आज मुझे सब मतलबी ओ के बिचमे भी अपनापन ढूंढना आ गया..
नीता कोटेचा.
मै थक गई यहाँ की मतलबी दुनिया से और मतलबी लोगो से.."
तो माँ ने कहा"बेटा, ये तो वो लोग है जो जिन्दगी जीना सिखाते है..
मै कैसे तुम्हें उनसे दूर रखु..तुम फिर कभी लड़ ना पोगी.."
तो मैंने कहा "माँ मुझे नहीं लड़ना इन लोगो से जो मेरे नहीं है पर मेरे होने का अहेसास जताते है.."
तो माँ ने कहा" ये अहेसास ही काफी है, यहाँ तो लोगो को मतलबी लोग भी नहीं मीलते..
तुम जियो इन्ही के बिचमे..
तब ही तुम सिख पोगी दुनिया में जीना.."
मै नाराज़ हो के चल रही थी तब माँ ने कहा..
"जाओ मत दो पल सो जाओ मेरी गोद में..इससे तुमसे ज्यादा मुझे सुकून मिलेगा..मै मतलबी नहीं ..मै तो एक ऐसी इन्सान हु तुम्हारी जिन्दगी की जो हर बार मुश्किलों में सर पे हाथ रखकर मुश्किलों से लड़ना सिखायेगी.."
और माँ देखो ,आज मुझे सब मतलबी ओ के बिचमे भी अपनापन ढूंढना आ गया..
नीता कोटेचा.
Saturday, March 7, 2009
कितना अजीब लगता है मुझे तो ये शब्द ही महिला दिवस..
साल में एक दिन मनाओ और उसमे भी सभी महिलाए खुश..
जैसे उनमे तो अक्कल ही नहीं है न...
आज भी उनको सुनना पड़ता है की कमाने की लालच में तुमने अपना स्त्रीत्व गुमा दिया है ..
पहेले से प्रथा चली आती थी की पुरुष घर के बहार जा कर कमाता था और नारी घर को संभालती थी..
पहेले जब कोई रिश्ता आता तो पहेले पूछा जाता था की आपके दादा कौन थे ..आपके मामा कौन है...अभी तो शादी के लिए रिश्ते आते है तो पूछा जाता है की आपकी बेटी कौन सी कंपनी में काम करती है कितना पगार है ..
ये है सुधरा हुवा समाज ..
अरे क्यों मनाते है ये दिन..
जब की आज भी भाई के ..या पापा के या फिर पति के मुड के ऊपर स्त्री ओ का दिन अच्छा जायेगा या बुरा जायेगा ये तय होता है...
जैसे नारी पहेले gulaam थी उतनी ही आज भी है..
आज भी टीवी में बालिका बधू और लाडो जैसी सीरियल दिखाते है मतलब की कही ऐसा हो रहा है वो सही है..और वो ही सोच के बुरा लगता hai ..
एक बेटी जब २१ सल् की होती है तो आज भी सब बाजू से आवाजे आने लगती है की अब कितना इंतजार करोगे ..शादी तय कर लो..जैसे शादी के अलावा जिन्दगी का कोई हेतु ही नहीं है दूसरा..
क्यों ये सब दिखावा होने देते है हाम मुझे वो ही पता नहीं चलता.
आज का दिन है जब हम ये दिन का विरोध करके अपना आक्रोश जता सकते है...
लोग मुझे कहेते है की नीता तुम क्यों इतना कड़वा बोलती हो...
पर मुझसे ये आडंबर की दुनिया नहीं सही जाती है...
मै नहीं मना सकती जूठ मुठ के दिन, क्या करू??
अगर हम नारियाँ एक हो जाए तो किसी भी पुरुष में इतनी शक्ति नहीं की हमें परेशान कर सके..
और ये शुरुआत हर सास और बहु को करनी है...
साल में एक दिन मनाओ और उसमे भी सभी महिलाए खुश..
जैसे उनमे तो अक्कल ही नहीं है न...
आज भी उनको सुनना पड़ता है की कमाने की लालच में तुमने अपना स्त्रीत्व गुमा दिया है ..
पहेले से प्रथा चली आती थी की पुरुष घर के बहार जा कर कमाता था और नारी घर को संभालती थी..
पहेले जब कोई रिश्ता आता तो पहेले पूछा जाता था की आपके दादा कौन थे ..आपके मामा कौन है...अभी तो शादी के लिए रिश्ते आते है तो पूछा जाता है की आपकी बेटी कौन सी कंपनी में काम करती है कितना पगार है ..
ये है सुधरा हुवा समाज ..
अरे क्यों मनाते है ये दिन..
जब की आज भी भाई के ..या पापा के या फिर पति के मुड के ऊपर स्त्री ओ का दिन अच्छा जायेगा या बुरा जायेगा ये तय होता है...
जैसे नारी पहेले gulaam थी उतनी ही आज भी है..
आज भी टीवी में बालिका बधू और लाडो जैसी सीरियल दिखाते है मतलब की कही ऐसा हो रहा है वो सही है..और वो ही सोच के बुरा लगता hai ..
एक बेटी जब २१ सल् की होती है तो आज भी सब बाजू से आवाजे आने लगती है की अब कितना इंतजार करोगे ..शादी तय कर लो..जैसे शादी के अलावा जिन्दगी का कोई हेतु ही नहीं है दूसरा..
क्यों ये सब दिखावा होने देते है हाम मुझे वो ही पता नहीं चलता.
आज का दिन है जब हम ये दिन का विरोध करके अपना आक्रोश जता सकते है...
लोग मुझे कहेते है की नीता तुम क्यों इतना कड़वा बोलती हो...
पर मुझसे ये आडंबर की दुनिया नहीं सही जाती है...
मै नहीं मना सकती जूठ मुठ के दिन, क्या करू??
अगर हम नारियाँ एक हो जाए तो किसी भी पुरुष में इतनी शक्ति नहीं की हमें परेशान कर सके..
और ये शुरुआत हर सास और बहु को करनी है...
Tuesday, March 3, 2009
Monday, March 2, 2009
बचपन की वो कड़वी यादे
बचपन की वो कड़वी यादे ..लेकर बड़े हुवे...
तो लगता था,
कि
अपना होगा घर..
और अपने होंगे बच्चे...
और हम जियेंगे अपनी तरह..
ना किसीकी डाट सुनने कि ..न कभी फटकार सुनने कि..
अब तो मै जियूंगी अपनी तरह...
पूरा आकाश मेरा और पूरी धरती मेरी...
पर जैसे जैसे बचपन बिछड़ता गया.
पता चला कि वो कड़वी यादे कितनी मीठी थी...
नीता कोटेचा
तो लगता था,
कि
अपना होगा घर..
और अपने होंगे बच्चे...
और हम जियेंगे अपनी तरह..
ना किसीकी डाट सुनने कि ..न कभी फटकार सुनने कि..
अब तो मै जियूंगी अपनी तरह...
पूरा आकाश मेरा और पूरी धरती मेरी...
पर जैसे जैसे बचपन बिछड़ता गया.
पता चला कि वो कड़वी यादे कितनी मीठी थी...
नीता कोटेचा
Monday, February 16, 2009
ए खुदा, तेरी महेफिल में हम ये फरियाद करते है..
उन सब को खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
तेरी महेफिल में सर जुकाया हमने इसलिए
क्योकि तेरे बनाए हुवे जहा को तेरे ही लोग रोंद रहे है..
हमने कहा वो सबको खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
तो ए खुदा मुझे इतना बता दे की जो तुम्हें याद करते है
वो
ऐसे कैसे होते है...
की लोगो का खून भी बहेता है तो उनको कोई फरक नहीं पड़ता.
अब क्या कहू ए खुदा ऐसे लोगो के लिए..
पर हम तो तेरे सच्चे बन्दे है...
तो ये ही दुआ करते है
की
कैसा भी हो वो..
पर
उन सब को खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
नीता कोटेचा..
उन सब को खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
तेरी महेफिल में सर जुकाया हमने इसलिए
क्योकि तेरे बनाए हुवे जहा को तेरे ही लोग रोंद रहे है..
हमने कहा वो सबको खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
तो ए खुदा मुझे इतना बता दे की जो तुम्हें याद करते है
वो
ऐसे कैसे होते है...
की लोगो का खून भी बहेता है तो उनको कोई फरक नहीं पड़ता.
अब क्या कहू ए खुदा ऐसे लोगो के लिए..
पर हम तो तेरे सच्चे बन्दे है...
तो ये ही दुआ करते है
की
कैसा भी हो वो..
पर
उन सब को खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
नीता कोटेचा..
Sunday, February 15, 2009
जब से तुम्हें दिल में बसाया हमने ,
हसना भूल गये और रोना भी भूल गये..
दुनिया ने इस तरह से सताया की तुम्हें भूलना भूल गये..
पल पल उन्होंने दिए ताने तुम्हारे नाम से ,
की तुम एक पल दूर न हो सके मुझसे..
दूर हो गये हो हर पल के लिए मुझसे..
पर यु दिल में बसे हो जैसे एक ,
चुभता हुवा नासूर जो मीठा लगता हो..
नीता कोटेचा
हसना भूल गये और रोना भी भूल गये..
दुनिया ने इस तरह से सताया की तुम्हें भूलना भूल गये..
पल पल उन्होंने दिए ताने तुम्हारे नाम से ,
की तुम एक पल दूर न हो सके मुझसे..
दूर हो गये हो हर पल के लिए मुझसे..
पर यु दिल में बसे हो जैसे एक ,
चुभता हुवा नासूर जो मीठा लगता हो..
नीता कोटेचा
प्रेम मौन है ..अगर हल्ला हो तो वो प्रेम नही, शायद है दिखावा..
प्रेम लेना नही ..प्रेम देना है..अगर उसमे उम्मीद कि,तो ज्यादा टिकता नहीं ...
प्रेम में भूल जाना है दुनिया को..बस सिर्फ प्रेम करना है एक दूजे को..
गलती देखनी नहीं है दूजे की..ये प्रेम नहीं है
पर
गलतिया दिखती ही नहीं दूजे कि,
इसे ही सच्चा प्रेम कहेते है (मेरे विचारों से..)
नीता कोटेचा
प्रेम लेना नही ..प्रेम देना है..अगर उसमे उम्मीद कि,तो ज्यादा टिकता नहीं ...
प्रेम में भूल जाना है दुनिया को..बस सिर्फ प्रेम करना है एक दूजे को..
गलती देखनी नहीं है दूजे की..ये प्रेम नहीं है
पर
गलतिया दिखती ही नहीं दूजे कि,
इसे ही सच्चा प्रेम कहेते है (मेरे विचारों से..)
नीता कोटेचा
शरीर या सिर्फ आत्मा.
अगर मै आत्मा हु तो मै रोता नहीं हु ..
और
अगर मै अभी भी शरीर हु,
तो हा मै रोता हु..
बहार से भी और अन्दर से भी...
और वो रोना कभी भी बंध नहीं होगा..
खुद तलाशिये खुद में की हम क्या है...
शरीर या सिर्फ आत्मा. ...
नीता कोटेचा..
और
अगर मै अभी भी शरीर हु,
तो हा मै रोता हु..
बहार से भी और अन्दर से भी...
और वो रोना कभी भी बंध नहीं होगा..
खुद तलाशिये खुद में की हम क्या है...
शरीर या सिर्फ आत्मा. ...
नीता कोटेचा..
Monday, February 9, 2009
नमस्ते दोस्तों॥
मै आपकी दुनिया में पहेली बार प्रवेश कर रही हु...मेरा नाम यशोदा पलन ..मै लेखिका और कवियत्री हु ..मेरी दो पुस्तक गुजराती में प्रकाशित हुई है ....
अगर आप मुझसे मिले होते तो आपको ऐसा लगता की ये कैसे लिखति होगी?क्योकि मै फिजिकली hendIkep हु ..सात सल् की आयु से ही रुमेटोइड आर्थ्राईटीस नामकी बिमारी मुझे हो गई थी...तब से मै बिस्तर पे ही हु...दोनों पैर गुटने से मुड़ते ही नही है ..दाहिना हाथ सीधा ही रहेता है और उसी हाथ की दो पहेली उंगलिया
हमेशा मुडी हुई रहेती है..और वो ही मुडी हुई उंगलिया के बिच्मेही पेन पकड़ कर लिखति हु ..इतने सालो से ऐसे ही कहानिया लिखके ,लेख लिखके जो मिलता था उससे घर चलता था। मतलब खाना मिल जता था..पर अबा मेरी आखो का रेटिना दुर्बल हो गया है..और आखो की रौशनी को बचाने के लिए मुझे डर दो महीने में एक बार इंजेक्शन लेना पडेगा..डॉ ..कम करके भी मुझसे ५०००/ एक इंजेक्शन का कह रहे है..एक साल का ६ इंजेक्शन मतलब ३०,००० Rs ..जो अब मेरे बस की बात नही रही..पर आख़ ही मेरा जीवन है...तो क्या आप मुझे मेरी आखों को बचाने के लिए मदद कर सकते हो???
अगर किसीको भी मुझसे मिलना है तो नीता आपको मेरे घर तक जरुर ले आएगी॥
मेरा add ॥
यशोदा पलन
डी लोहाना परिषद्
पहेला माला ,रूम नम्बर ३९.. एन एस रोड
मुलुंड वेस्ट
मुंबई ..४०००८०
मेरे डॉ..का नाम है
डॉ.गौरांग शाह
9820047411॥
अगर नीता को कुश संदेश देना है तो उसका id है॥
neetakotecha.1968@gmail.com
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