Monday, December 5, 2011

इतनी मोहब्बत क्यों हम तुम से कर बैठे
की
इतनी बेरुखी पे भी हम दूर नहीं हों पा रहे तुमसे..

नीता कोटेचा.

Monday, November 21, 2011

बेवकुफों की तरह इंसानों के पास हम उम्मीद रखते है,
मर्ज़ी ना हों तो उपर वाला भी हमें कहा प्यार देता है...

नीता कोटेचा

Thursday, November 17, 2011

क्या करोगे ऐसी खूबसूरती का जिन्हें चाहने वाले हम ना होंगे,
क्या करोगे ऐसी जिंदगी का जहा साथ देने वाले हम ना होंगे..
मुड़ के लौट आओ वापस हमारे पास,
मुस्कराओगे कैसे गर हसाने वाले हम ना होंगे..
नीता कोटेचा..

Friday, July 29, 2011

नाराज़ होते है तो बुलाता कोई नहीं..
चले जाते है तो आवाज़ देता कोई नहीं..
जिंदगी के मायने कितने बदल गये है अब,
कभी हमारी एक आवाज़ को तरसते थे लोग ,
अब तो चुप रहते है तो पुकारता कोई नहीं..

नीता कोटेचा.

Thursday, July 28, 2011

ख़्वाब पर तो किसी का ना हक है ना काबू,
देखो हमने तुम्हें वही देखा और प्यार कर लिया

नीता कोटेचा
समंदर से कह दो कि अपनी लहरों को संभाल के रखे..

फिर शिकायत ना करे ,
क्योकि हम अपने आप में बहुत तुफ्फां छिपा रखे है

नीता कोटेचा

Monday, May 9, 2011

नेट की दुनिया

ये नेट की दुनिया बड़ी अजीब होती है..
पहले लोग कहते थे की जब किसी से अगले जन्म का लें ना देना हो बाकी तो ही एक दुसरे को मिलते है..
यहाँ हजारों लोग अपने बन चुके है
किस किससे अगले जन्म का नाता हम ढूंढे ये कोई बताए.

जब तुम मिले थे, लगता था की जैसे मेरी दुनिया प्यार से भरपूर हो गई..
बिना देखे तुम्हें, बिना जाने पहचाने मैंने तुमसे प्यार किया..
बेइंतिहा प्यार किया..

पर अब तुम मेरे जीवन में नहीं हो..
बस उब चुके मुझसे
अब कोई नए साथी की तलाश में तुम निकल पड़े ..
या नए साथी के मिलने पर ही मुझसे नाता तोड़ दिया..
ये तो लेना था ही नहीं
बस सिर्फ देना ही था..

मेरी भावनाओं का देना
मेरा दिल का देना
मेरा अश्रु ओ का देना
मेरे वक्त का देना..
और मेरी मुहब्बत का देना..

चलो शायद मैंने भी ऐसा ही कुछ किया होगा गए जन्म में तुम्हारे साथ..
पर एक बात पूछ लू..अब तो हिसाब चुकता हो गया ना..
क्या अगले जन्म में मेरे दोस्त बनोगे तुम ?

नीता कोटेचा

Sunday, May 8, 2011

चलो आज की नींद भी उनके नाम करते है,

ख़्वाब मे तो वैसे भी वो कहा करीब होते है...

नीता कोटेचा

Saturday, May 7, 2011

मुझे माफ़ कर देना मम्मी



मै कुछ जोर से बोल दी थी तुम्हें
और तुम रो पड़ी थी.

पर तुम रसोई में कम करते करते रो रही थी ,
मुझे पता भी चलने नहीं दीया था..

और मै अचानक पानी पिने रसोई में आई,
तो देखा की तेरी आँखों में आँसू बहे जा रहे थे..,

मैंने पूछा मम्मी क्या हुवा ? क्यों रो रही हों ?
तो तुमने कहा बेटा अगर मेरा बच्चा मुझे जोर से कुछ कहे तो मुझसे कैसे सहा जाएगा.

मुझे बहुत दुःख हुवा की मैंने मेरी मा का दिल दुभाया..
मै उसके गले लग गई और मैंने कहा
"मा, तो मुझे डाट लेना था ,क्यों अकेले अकेले रो रही हों ?

तो मा ने कहा "बेटा अगर मै तुम्हें जोर से डाटूंगी तो तुम्हें भी दुःख होता ना.
वो बात को याद करके आज भी रो देती हु..

मुझे माफ़ कर देना मम्मी.

मै कितनी खुशनसीब हु की तुम आज भी मेरे पास हों और मेरे साथ हों..

Monday, May 2, 2011

तुम्हारे लिए
















तुम्हारे लिए
कितने अश्क बहाए तेरे लिए.
तुम तो मुझे भी भूल गये हों उम्र भर के लिए...
काश तुम्हारा दिल पहले जैसा होता..
तो आज हम भी मुस्कराते जिंदगी के लिए..
कभी सोचती हु क्या तुम हों इतने प्यार के हक़दार
पर फिर सोचती हुं मै तो हुं ना सिर्फ प्यार देने के लिए..
जाओ अब तुमसे कभी फ़रियाद ना करेंगे
और ना कभी तुम्हारे दर पे प्यार मांगने आयेंगे..
तुम जितना चाहे बदल जाओ ,
आ जाना जब जरुरत पड़े हमारी कभी जिंदगी में..






नीता कोटेचा

Friday, April 29, 2011

दोस्ती



दोस्ती जिंदगी है, शान है, जान है,
अगर दोस्त साथ रहे तो..

नहीं तो

दोस्ती एक भवर है जिंदगी की..
जो जब टूटती है तो,
दिल को लहु लूहान कर देती है,
ना अश्क थमते है और ना ही जिंदगी रहेती है जीने लायक दोस्तों ..

नीता कोटेचा "नित्या"

Monday, April 25, 2011


आज तुम्हारे सारे ख़त पढ़े..
किसी मे लिखा था की तुम्हारे बीना मै जी नहीं पाऊँगी,
किसी मे लिखा था " तू कुछ सोच मत उलटा, मै कभी भी नहीं बदलूंगी.."
किसी मे लिखा था " मै तुम्हारी ही रहूँगी जिंदगी भर "
किसी मे लिखा था " अगर तुम मुझसे कभी दूर हुई तो जान से मार डालूंगी तुम्हें "
आज तुम मेरे बीना जी रही हों,
आज तुम बदल गई हों.,
आज तुम कही भी मुझे दिखाई भी नहीं दे रही हों,
और आज तुम ही मुझसे दूर हों गई हों,
अब तुम ही कहो क्या करूँ ये ख़त का ?
अगर मिटा देती हु तो तुम्हारा प्यार मुझे अब तो सिर्फ इसमें से ही मिलने वाला है..कैसे मिटाउ ?
और अगर नहीं मिटाती हु तो मेरी आंखे रोना बंध नहीं करती..
क्यों ऐसा रिश्ता बंधा जिसमे जब तक साथ थे तुम खुश थी,
पर आज साथ नहीं है तो भी तुम खुश हों...
चलो मै ही तय कर रही हु की प्यार का खोना बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे..
भले रो रो के आखे चली जाये ..
तुम्हारी सखी..

नीता कोटेचा "नित्या"

तुम्हें आवाज़ दे के देख लिया..
तुम्हें दिल से
पुकार के देख लिया..


लगता है या मेरी आवाज़ नहीं निकल रही
या फिर तुम्हें मेरी आवाज़ सुनाई नहीं दे रही..

मैंने तो हर दम तुम्हारा साथ चाहा था..


मैंने तो हर दम तुम्हें पाना चाहा था..
लगता है या मेरा पास रहना तुम्हें अच्छा ना लगा ,
या फिर मेरे करीब आना तुम्हें अच्छा नहीं नहीं ..

इस कदर तो मुह ना मोड़ो,
कि टूट जाए हम,
ना तुम मुझे कभी ढूंढ़ पाओ ,
और ना कभी खुद को पा सके हम

नीता कोटेचा "नित्या

बस एक आख़िरी सास लेनी है अब...
जी को अब आराम देना है अब...
क्यों परेशान करे उसे तेरी यादों से,
सब बातों से उसे आराम देना है अब...

जी किया आख़िरी सास पे तुजे बुला लू,
एक बार पछताने का मौक़ा दे दू..
क्योंकि फिर जो तुम रोओगे वो शायद माँ ना देख सकूँ,
पर नहीं बुलाना तुम्हें जाने दो,
क्योंकि ये ही कहोगे की गलती तुम्हारी थी..
की तुमने मुझसे ज्यादा मुहब्बत की..

इसलिए अब नहीं अब बस...
अब मौक़ा तुम्हें देना नहीं एक भी..
बस तुम रोना नहीं मेरी मौत पे दोस्त,
क्योंकि गलती मेरी थी ना, मुहब्बत तो मैंने की थी ना..
तो मै ना देख पाऊँगी तुम्हें रोते हूवे..

नीता कोटेचा

Friday, April 22, 2011

मनन...........(परवरिश )

आज स्वपनिल और संध्या ने तय किया था कि आज तो वो डॉ. से कहेंगे ही की अब दवाई बदलो क्योंकि....
आज मनन को बुखार में तपते चौथा दिन था ...पर बुखार उतरने का नाम ही नहीं ले रहा था..आखिर स्वप्निल और संध्या से अब सहा नहीं जा रहा था तो उन्होंने डॉ. से कहा कि क्या हम मनन को किसी अच्छे अस्पताल में दाखिल करवा दे ? डॉ. ने मना कर दिया कि ऐसी कोई जरुरत नहीं है बुखार उतर जाएगा....पर अब वो दोनों माने नहीं और शहर के सबसे अच्छे अस्पताल में मनन को दाखिल करवा दिया गया..
उम्र बहुत काम थी मनन की..सिर्फ सात साल का ही तो था....पर उसे ठीक से होश नहीं आ रहा था. वो नींद में कुछ बोले जा रहा था..क्या बोल रहा था ये किसी को समझ नहीं आ रहा था..|
आखिर में डॉ. ने मनन के माता पिता को अपनी केबिन में बुलाया...और पूछा कि "अब आप लोग मुझे बताये कि जब उसे बुखार आया है उसे पहले आपके घर में कुछ हुआ था ? " स्वप्निल ने जवाब दिया " ऐसा कुछ ख़ास नहीं हुआ था. बस हम दोनों के बीच में छोटा सा झगडा हुआ था....पर ये हम दोनों के बीच बहुत आम सी बात है ....इस बार भी कोई नयी बात नहीं हुई .."
डॉ.बीच में ही गुस्से से बोले " चलता रहता है से मतलब ? तुम लोगो की अपने बच्चे को लेकर कोई जवाबदारी है की नहीं....तुम लोग समझते क्यों नहीं..पहले ये बतायो की झगडा क्या था ?
स्वप्निल थोड़ा डर सा गया..उसने कहा " उस दिन मेरी बीवी के मायके वालो ने पूजा कीर्तन रखा था और हमारे बीच इसी बात को लेकर झगडा हुआ कि उन लोगो ने मुझे इज्ज़त से आमंत्रित करने के लिये फोन नहीं किया.."
और संध्याने कहा था कि " तुम चाहो तो मनन से पूछ लो उसे भी पता है कि मम्मी और पापा दोनों का फोन आया था.....उन लोगो ने बहुत इज्ज़त और सम्मान से हमहे बुलाया है "
पर मैंने ही मनन को बहुत जोर से डांट के पूछा था कि " सच बताओ, कहीं मम्मी ने ही तो नहीं तुम्हे झूठ बोलने को कहा है ...."और वो मेरी इस बात और जोर की आवाज़ से डर गया था और अपनी मम्मी के पीछे छुप गया था..और मै मेरी जिद्द के कारण पूजा में नहीं गया जिसकी वजहे से संध्या रो रो के सो गई..सुबह उठ ने के बाद हमने देखा तो मनन को बहुत तेज़ बुखार था..|
इतना सुनते ही डॉ. ने जोर से अपना हाथ अपने टेबल पे पटका और बोले " तुम लोगो में अक्ल नाम की जैसी चीज है की नहीं..खुद की बात को सही और झूठी साबित करने के लिये एक छोटे बच्चे का सहारा लिया..शर्म आनी चाहिए तुम दोनों को..."
स्वप्निल और संध्या को खुद की गलती समझते देर नहीं लगी .. पर अब क्या ?
आज ८ दिन हो गए पर मनन का बुखार नहीं उतर रहा था. और ना वो ठीक से होश में आ रहा था..
आखिर में डॉ. ने कहा " अब आपके पास एक ही रास्ता है, आप अपनी पत्नी के मायके वालो को बुलाओ औरअच्छे से बाते करो ताकि उन बातो को मनन सुने ....इसी से कुछ फर्क पड़ेगा मनन के मन पर ..जिस से वो कुछ ठीक हो सकता है ......खुद के गुस्से का डर निकालो उसके मन से ...."
बिना वक़्त बर्बाद किये ...स्वप्निल अपने ससुराल गया और अपने ससुर से माफ़ी मांगी और डॉ. ने जो जो बाते उस से कही थी सब जा कर बताई..सास और ससुर तुरंत उसके साथ अस्पताल पहुंचे .और जैसे कि डॉ. ने उन्हें समझाया था वैसे ही उन्होंने किया..और कुछ ही वक़्त में इसका असर मनन की आँखों में देखने को मिला ....वो अपने मम्मी पापा के प्यार को करीब से देख कर कुछ खुश नज़र आ रहा था ......आहिस्ता आहिस्ता मनन का बुखार उतरने लगा..और अगले तीन में वो काफी ठीक भी हो गया ..पर ठीक होने के बाद मनन ने अपनी मम्मी से सबसे पहले ये पूछा " मम्मी , पापा गुस्से में तो नहीं है ना ?"और संध्या ने हँसते हुए उसके बालो को सहला दिया ....
अब डॉ. ने उसे आज घर ले जाने की अनुमति दे दी..स्वप्निल और संध्या को डॉ. ने बुलाया और कहा " तुम्हारे लिये जो बहुत छोटी सी बात होती है वो कभी कभी बच्चों के लिये बहुत बड़ी बात ...इस जीवन का आधार बन जाती है ..उनके मन में वो ऐसी कुंठा को जन्म देती है कि उनके जीने का आधार ही बदल जाता है ..वो माता पिता के झगड़ो को सह नहीं सकते..... अब मै ये ही कहूँगा कि आगे से उसके सामने बहुत संभाल कर बात करना"|
उस दिन से स्वप्निल और संध्या ने अपने जीने का तरीका ही बदल लिया और घर में हर पल ख़ुशी से भरा वातावरण रखने लगे.. उन्होंने समझ लिया था कि बच्चों को बहुत ही प्रेम से और ध्यान से बड़ा करना ही उनका कर्तव्य है |
स्वप्निल सोच रहा था कि हम अपने अभिमान , मान , अपमान के चक्कर में अपने ही बच्चों को अपनी ही बातो से परेशान करते रहते है और छोटी छोटी बातो पर हम सबका कभी ध्यान भी नहीं जाता.. बच्चों के मन को पढ़ना बहुत जरुरी है ...नहीं तो भगवान ने दिए हुए फूल को मुरझा जाने में देर नहीं लगेगी ..और हमने भगवान का अपमान किया ऐसा ही कहलाएगा .........

Wednesday, April 20, 2011

विश्वास की डोर

जैसे जैसे अंधेरी(मुंबई ) स्टेशन नज़दीक आता गया मौनी के मन में घबराहट वैसे वैसे बढती जा रही थी , मौनी अंधेरी के एक कॉलेज में प्रोफेसर थी .कॉलेज में सब उससे डरते थे|पर पिछले ४ महीनो से मौनी अपने ही कॉलेज के प्रोफ़ेसर गाँधी से..आमना सामना होने पर डरने लगी थी..उसे ये ही डर था कि अगर किसी ने ..या खुद प्रोफ़ेसर गाँधी ने उसे चोर नज़रो से देखते हुए ... देख लिया तो..??????
मौनी को वो दिन याद आता था जब उसकी मम्मी उसे कहती थी "मौनी शादी कर ले., मेरे लिये तू शादी नहीं करके गलती कर रही हो ,मेरे जाने के बाद तुम पूरी जिंदगी अकेली कैसे जीएगी .और उम्र बढ़ जाने के बाद कोई मिलेगा भी नहीं...जो तुम्हारा जीवन साथी बन सके..और हर बार मौनी ने मम्मी की बात को सुन कर अनसुना कर दिया .... अब मौनी को बहुत बार मम्मी की बात याद आती थी. ... बहुत बार ऐसा होता था कि उसे लगता था की इस वक़्त कोई ना हो जिसके साथ वो अपने दिल की...अपनी दिनचर्या की सभी बाते उसके साथ कर सके ,...अपने दिल का गम हल्का कर सके..|पर अब बहुत देर हो चुकी थी ....वक़्त उसके हाथो से किसी मछली सा फिसल चुका था ...अब ये बात सोचकर खुद को दुःख देने का कोई मतलब नहीं .... पर दिल और दिमाग की लड़ाई उसके अपने वश में नहीं थी...
हमारे ना चाहने पर भी ....दिमाग में उठने वाली सोच खुदबखुद किसी बिन बुलाये मेहमान की तरह उसके करीब चली आती थी ...|
कभी कभी दिल करता था की बच्चों से थोडा हँसी .. मज़ाक करे ..उनसे बाते करे ...पर कभी ऐसा वो कर नहीं पाई .....पूरी जिन्दगी खुद को उदासी के खोल में बंध रखा औरअपनी गुस्से वाले प्रतिरूप अब यूँ अचानक .कैसे वो सबके सामने थोड दे |प्रोफ़ेसर गाँधी का यूँ अचानक उसकी जिंदगी में ...उस से पूछे बिना आना,...उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अब ये ४४ की उम्र में किस्मत उसे क्या दिखाने वाली थी? प्रोफ़ेसर गाँधी अपनी उम्र के ४७ साल पूरे कर चुके थे ..,,उन्होंने भी शादी नहीं की थी |जैसा वो पहले दिन से सुनती आई थी कि प्रोफ़ेसर बहुत गुस्से वाले है ...पर उनसे मिलने के बाद पता चला कि ...वो बहुत ही हँसमुख इन्सान थे..बिंदास हँसते और हँसाते थे और मौनी ने तो अपनी जिन्दगी में कभी किसी को हँसते हुए देखा ही नहीं था....जिसकी वजह से अब मौनी हँसना ही भूल गई थी..|
कभी कभी जिन्दगी के आस पास हम ही ऐसा वातावरण खड़ा कर देताहै कि ना चाहते हुए भी उसी के मकडजाल में फसं कर रह जाते हैं |
अंधेरी स्टेशन आ गया ....वो दरवाजे के पास ही खड़ी थी और उसने देखा प्रोफ़ेसर गाँधी तो पहले से ही उसका इंतजार कर रहे थे....बहुत दिनों से उन दोनों का ये नित्य क्रम हो गया था....वो ध्यान भी तो बहुत रखते थे मौनी का..
वो जब जब मिलते थे तब तो जैसे मौनी हँसने के अलावा कुछ काम ही नहीं करती थी..और अलग होने के बाद भी तो वो दोनों दिन में दो बार फोन पर बात कर ही लेते थे..
मौनी कभी कभी अपने इस रिश्ते को लेके डर सी जाती थी..पर जब भी प्रोफ़ेसर को देखती वो डर भूल जाती....ना चाहते हुए भी वो दिनोदिन उनके करीब होती जा रही थी ...रोज कॉलेज के लिये जल्दी निकलना .. दोनों का साथ में मिल के चाय नाश्ता करना और फिर कॉलेज में एक साथ जाना .....
आज भी जब से मिले तब से मौनी का हँसना ही शुरू था..दोनों नाश्ता कर रहे थे तभी प्रोफेसर ने मौनी से पूछा ''मौनी, तुमने मुझे ये तो बताया कि तुमने शादी नहीं की ..अपनी मम्मी के लिये,पर तुमने मुझ से कभी नहीं पूछा कि मैंने शादी क्यों नहीं की..?"
मौनी की धड़कन जैसे रुक सी गई, उसे पता नहीं था कि प्रोफ़ेसर अपनी बात किस रूप में उसके सामने रखेगे ...वो ये तो जानती थी कि ये बात कभी ना कभी तो उठेगी ही|
मौनी ने खुद को संभालते हुए कहा कि " आप ही बता दो कि ''क्यों नहीं की शादी ?"
तब प्रोफ़ेसर ने कहा " मुझे एक लडकी पसंद थी जो मेरे साथ पढ़ती थी., उसकी शादी किसी और से हो गई..तब से मै किसी और मै फिर कभी किसी को अपने ह्रदय में स्थान नहीं दे पाया|
मौनी ने प्रश्नवाचक नज़रों से उनकी तरफ देखा जैसे पूछ रही हो "क्या अब वो प्यार तुमने मुझे में भी नहीं देखा ?
तभी प्रोफ़ेसर बोले " नजरो से मत पूछो मौनी जो पूछना है जोर से पूछो ना..".....कुछ देर की खामोशी और स्त्बधता के बाद मौनी की नजर शर्म से झुक गई ..|
तभी प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ से उसका चेहरा ऊपर किया..मौनी जैसे कांप सी गई..पहली बार उसको किसी पुरुँष ने छुआ था.. उसने डर और हया से अपनी आँखे बंद कर ली|तभी प्रोफ़ेसर ने कहा " मौनी शायद भगवान को ये ही मंज़ूर था कि हम दोनों मिले इसीलिए हमारी शादी उस वक्त नहीं हुई ..अब हमें सच्चे साथ और साथी के प्यार की जरुरत है जो हमें एक दूसरे से ही मिल सकती है..अब हम जिंदगी को अच्छे से समझने लगे है ..इस से पहले कि वक्त हमें फिर से अकेला कर दे उससे पहले आयो ..... हम एक हो जाए..
और उस वक़्त प्यार और विश्वास की डोर में बंधी मौनी ने प्रोफ़ेसर का हाथ कस के पकड़ लेती है .

Thursday, March 31, 2011

" स्वप्निल"

भगवान ने ये कैसी दुनिया बनाई है कि मानव उसकी मोह माया में से निकल ही नहीं सकता.. जिनके बच्चे होते है वो भी रोते है जिनके नहीं होते वो भी रोते हैं ....

"शादी के ८ साल होने को आये थे पर अमिता को बच्चा नहीं हों रहा था..अमिता और नीरव ने प्रेम विवाह किया था .अमिता मराठी और नीरव गुजराती था .नीरव के मम्मी पापा इस शादी से खुश नहीं थे.इसलिए नीरव ने शादी करके अपना अलग घर बसा लिया था................. अब तो सब के रिश्ते अच्छे हों गये थे फिर भी अभी तक नीरव साथ में रहने के लिए तैयार ना था.उसके दिल में एक दुःख था कि उसकी पसंद पर उसके मम्मी पापा ने शक किया था..और मम्मी पापा को लगता था कि नीरव उन्हें समझ नहीं पा रहा था..ये इसी नासमझी में ही वो अलग रहे ..शादी के ५ साल बाद एक बार जब नीरव के पापा को हृदयघात हुआ और अमिता ने उनकी जिस अपनेपन से सेवा की तब उन्हें अहसास हुआ कि अमिता भले अलग धर्म की थी पर ह्रदय तो उसका भी नाजुक ही था..फिर रिश्ते अच्छे हों गये पर नीरव साथ रहने के लिए कभी माना नहीं..आज जब डॉ. के से खबर मिली की अमिता माँ बनने वाली है तब वो बहुत खुश हुआ ,पर डॉ. ने ये भी कहा था कि अमिता की बड़ी उम्र और भारी शरीर के कारण उसे बहुत संभालना पडेगा..नहीं तो माँ और बच्चे दोनों के लिए ख़तरा है..
" उपरवाले का उपकार समझ कर उन्होंने बड़े ध्यान से दिन बिताने शुरू किये..इस बार नीरव की मम्मी खुद से आकर उनके साथ रहने लगी..और अमिता की देखभाल करने लगी..नीरव ये देखकर बहुत ख़ुश हुआ ..कभी कभी अमिता को हंसाने के लिए नीरव कहता "बेटी होगी या बेटा ? और हम
उनका नाम क्या रखेंगे..कुछ तो सोचो.." पर अमिता कांप उठती और कहती " नीरव अभी कुछ मत सोचो..जब जो होगा तब वो सोचेंगे.."और तीनो जन चुप से हों जाते..क्योकि डर सब के दिल में उतना ही था..
' सातवा महीना चल रहा था एक दिन अमिता की तबियत बहुत बिगड़ने लगी और उसे अस्पताल ले जाना पडा. उसे और उसके बेटे दोनों को बचा लिया गया..पर डॉ. ने नीरव को बुला कर कहा कि" भगवान् से प्रार्थना करो की बच्चा बच जाए..और दो महिने अच्छे से निकाल जाएँ ताकि बचा सुरक्षित जन्म ले सके .. " नीरव को चिंता ने घेर लिया..पर उसने अमिता को कुछ नहीं कहा.. नीरव का चहेरा देख के अमिता समझ गई कि बच्चे को कुछ ज्यादा ही तकलीफ है . एक दिन अमिता की तबियत कुछ ज्यादा बिगड़ी .पर उसने भी नीरव को परेशान करना ठीक ना समझा ..इसलिए वो भी चुप रही..ऐसे ही देखते -संभालते आठवा महीना लग गया. और अब बस बीस दिन निकालने बाकी थे..उतने निकल जाए तो भी अच्छा था..
"पर जो इंसान सोचता है वो तो होता नहीं.. उसे पाचवे दिन ही तकलीफ शुरू हों गई और तुरंत हॉस्पिटल ले जाना पडा..थोड़ी देर में डॉ. ने आकर कहा की बेटा हुआ है..पर बच्चे को कांच की पेटी(इन्कुबेटर ) में रखना पडेगा..क्योकि बच्चे की धड़कन बहुत धीमी चल रही थी. नीरव ने तुरंत बच्चे को दुसरे अस्पताल में भर्ती करवा दिया. उसी अस्पताल में एक कमरा अमिता के लिए ले लिया..ताकि वो भी बच्चे के करीब रह सके. एक दिन बीता , बड़े डॉ. को बुलाया गया.. दुसरा दिन बीता . और दुसरे बड़े डॉ. को बुलाया गया..बच्चे को देखने के बाद डॉ.कि आपस में बातचीत हुई और उन्होंने नीरव को बुलाया और कहा" बच्चा वेंटीलेटर पर ही है..हमारी तरफ से हमने कोई कसर बाकी नहीं रखी पर हमें कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही .. अब आप लोगो को तय करना है की वेंटीलेटर हटा दे या नहीं.."
' नीरव पर तो जैसे आसमान गिर गया.. वो अमिता को ये सब कैसे बताये , ये सोच कर परेशान था.. इतने सालो के बाद भगवान् ने बच्चा दिया और उसे मारने का निर्णय भी हमें ही करना है ,, आखिर उसने अमिता से ये बात कही ..अमिता संभाली नहीं जा रही थी..थोड़ी देर बाद नीरव ने तय किया की इस तरह से अपने बच्चे को परेशान नहीं कर सकता..वो डॉ.. को कहने के लिए खडा हुआ कि .. तभी अमिता ने उसका हाथ पकड़ कर कहा " नीरव, चलो हम अपने बच्चे का नाम तो रख ले..जिससे हम उसे कुछ नाम से याद कर सके.." अमीता की ये बात सुन कर अब नीरव टूट सा गया..और जोर से रो पडा..
' अब अमीता ने नीरव से कहा." नीरव रोने से कुछ नहीं होगा..हम हमेशा भगवान् से कहते थे की हमें बच्चा दो ,इसलिए उसने दे तो दिया..पर उसकी मृत्यु की जिमेद्दारी भी हमें ही दे दी..अब हम उससे कभी बच्चा नहीं मांगेगे..... हम उसका नाम" स्वप्निल" रखते है...... वो अपना सपना पूरा करने ही तो आया था.. भले चार दिन के लिए सही..... पर उसने हमें मम्मी पापा बनाया तो सही.."अब नीरव डॉ. के कमरे की तरफ जाने लगा तभी उसे पीछे से अमिता की और उसकी मम्मी की रोने की आवाज सुनाई दी...

नीता कोटेचा "नित्या"

Monday, March 28, 2011

भूल

अहमदाबाद एक्सप्रेस बहुत तेजी से अपनी मंज़िल की और बढ़ रही थी पर वनिता के मन में चैन नहीं था..ना आँखो में नींद थी...बस बीस साल पहले की बाते जैसे आँखो के आगे से एक पिक्चर की तरह आ जा रही थी...उसने अपनी सोच से बचने के लिये आँखे जोर से बांध कर ली ....आँखे बंध करने से सोच अटकती कहाँ है ?और बंध आँखों से भी सोच ने वनिता को जैसे घेर लिया और अपने अतीत के शिकंजे से वनिता खुद को ना बचा सकी..वो सोच रही थी कि कभी रिश्तो में हम ऐसे उलझ से जाते है कि हमें खुद को पता ही नहीं चलता की हम सही है या गलत..........|.
और उसे याद आ गई सारी बाते....वनिता के मम्मी पापा का देहांत हुआ तब वो सिर्फ १२ साल की थी.....अब घर में चाचा और वो दोनों
ही बचे थे .. ..चाचा भी कहाँ ज्यादा बड़े थे.....बस उससे सिर्फ ८ साल बड़े..पर चाचा ने सब बहुत अच्छे से संभाल लिया था.और उसे याद आ गई सारी बाते....अब घर में वनिता की कोई भी बात हो तो .. आख़िरी निर्णय उसके चाचा का ही होता था..और चाचा की बात वो मान भी लेती थी..वो चाचा भतीजी से ज्यादा तो दोस्त थे एक दूसरे के..बस चाचा ही उसकी जिन्दगी थी|
ऐसे ही जब वो एक दिन सुबह सो कर उठी थी तो उसने देखा था कि उनके कई रिश्तेदार घर आये हुए थे..और जाते वक्त कहते गए कि आज शाम को चाचा को देखने कोई लड़की वाले आने वाले है .... वनिता इस बात को तो भूल ही गई थी की चाचा की जिन्दगी में उसके अतिरिक्त दूसरी लड़की भी कोई आ सकती है उसे ऐसा लगता था कि जैसे वो और चाचा ही पूरी जिन्दगी साथ साथ रहने वाले है ......|
और कुछ दिन के बाद चाची आ ही गई.....चाची का आना वनिता को पसंद नहीं आया |अब चाचा को उसके लिये कहाँ वक्त था....वनिता को दुःख इस बात का था की चाचा को पता भी नहीं था कि उसके दिल पे क्या बीत रही थी..
थोड़े दिन बाद चाची को वापस उसके मायके वाले अपने घर ले गए और कह के गए की हम ८ दिन बाद छोड़ के जायेंगे..अब वनिता खुश थी की अब वो चाचा के साथ अकेली रह सकेगी....|
जिस दिन चाची गई उस दिन वनिता ने बहुत अच्छा खाना बनाया..खाना खाने के बाद दोनों थोड़ी देर साथ में बैठे बात करने के लिये..चाचा उसे सब पूछ रहे थे कि कैसी चल रही है पढ़ाई...घर आने और जाने का वक़्त उसकी सहेलियों के बारे में और भी बहुत कुछ..
तभी चाचा को बीच में रोकते हुए वनिता ने कहा " कितने दिनों बाद आप ये सब मुझ से पूछ रहे हो..कहाँ खो गए हो आप?"चाचा ने हँस के जवाब दिया"वनिता अब मेरी भी जिम्मेदारी है,...मुझे तुम्हारी चाची की तरफ भी तो ध्यान देना है ना.अब तुम्हारे लिये तुम्हारी चाची है ना..उसके कहो अपने मन की बाते ..अपना सारा दिनचर्या अपनी चाची से कहो ...वो भी खुश हो जाएगी .. ..तभी वनिता बिच में ही बोल उठी" जरुरत क्या थी शादी करने की ? क्या मै नहीं थी आप के लिये ?" चाचा जोर से हँस पड़े..और बोले"विनीता मेरी भी कुछ जरूरत होती है जो तुम पूरा नहीं कर सकती हो.."
और वनीता ने कहा" एक बार कहा तो होता सब ख़्वाहिश पूरी करती आपकी मै..मै भी अब छोटी नहीं हूँ "|और वनिता की बात सुन कर चाचा झटके से खड़े हो गए और कुछ भी बोले बिना गुस्से में अपने कमरे में चले गए
वनिता भी उनके गुस्से से डर गई..तब तो अपने कमरे में चली गई पर पूरी रात सो ना सकी..सुबह होते होते उसे नींद आई..जब उठी तो उसने देखा ८ दिन बाद आने वाले चाची घर वापस आ गई थी ....वनिता समझ गई कि चाचा ने ही उनको बुला लिया होगा..दो दिन बीत गए उसने देखा चाचा उसके साथ बात नहीं कर रहे थे..|और तीसरे दिन
वनिता घर छोड़कर निकल गई..
पूरे रास्ते
वनिता वो ही तो सोच रही थी कि क्या क्या नहीं हुआ इतने सालो में उसके साथ.. कितने लोग आये उसकी जिंदगी में ..जब चाचा के घर से निकली थी तब क्या था उसके साथ ... बस एक सहेली का साथ ..उसीने तो उसे मुंबई भेजा था..वहां जाने के बाद पहले दो दिन वो सहेली के साथ उसके मामा के घर रही और दो दिन के बाद उसने वहां की एक हॉस्टल में उसे जगह दिला दी..और फिर एक ऑफिस में काम.. आहिस्ता आहिस्ता ऑफिस वालो के साथ दोस्ती हों गई.....काम ज्यादा करने लगी.....पैसे कमाने लगी और किराये पे अपना छोटा सा घर लिया..बीच बीच में अपनी सहेली से चाचा का हाल जानती रहती थी..उसके चाचा वनिता के जाने के बाद पागल से हो गए थे... ..कहीं से वनिता का पता मिल जाये इसके लिए वो कितनी बार उसकी सहेली से उसके बारे में पूछ चुके थे.....कि वनिता का कोई समाचार मिले तो जरुर बताना.....समय जैसे अपनों को भी दूर कर देता है वैसे ही थक हार कर ... आहिस्ता आहिस्ता चाचा ने भी उसकी सहेली से भी बात करनी बंध कर दी थी |.पर इस बार उसी सहेली ने आ कर उसे ये खबर दी कि अब उसके चाचा बहुत बीमार है जब से वो घर छोड़ के गई है .....
ये सुन कर खुद पे काबू नहीं रख पाई वनिता और सहेली कि गोद में सर रख कर फूट फूट रो पड़ी ......जैसे बरसो का रुका सैलाब अपने किनारे तोड़ कर बाहर आ गया हो|अब उसके सामने सबसे बड़ा प्रशन ये ही था कि वो घर कैसे जैसे ..चाचा चाची का सामना कैसे करे ..उनसे नज़रे कैसे मिलाये? बहुत बार अकेले में सोचती थी की गलती किसकी थी उसकी ...उसकी उस उम्र की या उसकी सोच की..चाचा ने तो कभी कोई गलत व्यवहार नहीं किया था.. तो उसे ये आकर्षण कैसे हों गया था?..उसके दिमाग में तब एक ही बात थी की चाचा सिर्फ मेरा ही है..वो और किसका हों ही नहीं सकता और उसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार थी....चाचा ने भी तो कभी कुछ समझाने की कोशिश नहीं की...पर अगर चाचा समझाते तो क्या वो उस वक़्त उनकी बातो को समझ पाती ....शायद नहीं. और उसने चाचा को मौक़ा भी तो नहीं दिया की वो उसे कुछ भी समझा सके..बस रुठके घर छोड़ दिया था..और मुंबई आ गई बिना किसी को बताये | ऑफिस में कितने परिणित और बिन परिणित पुरुषो ने उसको प्यार करने की कोशिष की पर ना चाहते हुए भी सब में उसे चाचा ही दिखाई देते थे .पर एक इंसान ने आ कर ...उसकी सोच ...उसका अपने चाचा को देखने का नजरिया ही बदल के रख दिया ..तब उसे पता चला कि प्यार क्या है..और अपनों की देखभाल और उनको संभाल के रखने की जिम्मेवारी उसे उम्र की इस पड़ाव पर पता चली कि वो चाचा को अपने साथ गलत सोचती रही अब तक |पर कल अचानक ही उसकी सहेली ओफिस आ पहुंची और वनिता का हाथ खींचते हुए उस से बोली कि ''वनिता चलो तुम्हारा चाचा बस आखरी सांसें गिन रहे है और शायद तुम्हारा इंतजार है उन्हें......और वनिता सब कुछ छोडके अहमदाबाद की ओर दौड़ पड़ी थी.उसे कल ही पता चला था कि चाचा बहुत ज्यादा बीमार है..और उसे याद कर रहे है..घर पहुँच कर उसने देखा तो चाचा बिस्तर पे लेटे हुए थे..जैसे दिखाई भी नहीं दे रहे थे..और चाची बहुत रो रही थी ..वनिता को देख कर वो उसके करीब आई और बोली " वनिता तुम्हारे जाने के दिन से वो ऐसे ही बिस्तर पे है..और एक ही बात पूछ रहे है.की वनिता को संभालने में मेरी कहाँ गलती हुई?वनिताकी आँखो में ये सुन कर आंसू आ गए..और चाचा के पास जा कर बोली.." चाचा गलती आपकी नहीं थी गलती मेरी सोच में थी मुझे माफ़ कर दो.." और चाचा ने उसके सर पे हाथ रखा और आखिरी साँस ले ली..जैसे एक बोझ से मुक्ति मिल गई......|
नीता कोटेचा "नित्या"

दिवाली क्या है


दिवाली क्या है ये उनसे क्यों पूछते हों जिनके घर भरे है..
उनसे पूछो जो मुश्किल से ये दिन ख़तम करते है..
उनसे पूछो जिनके घर नए कपड़ो की बौछारे नहीं होती ,
जिनके घर फटाके नहीं आते..
जिनके घरो में घी के दिए नहीं जलते..
क्योकि खाने को ही घी नहीं होता..
जिनके पापा घर पर देरी से आते है..
की बच्चो का सामना ना करना पड़े..
और बच्चे जल्दी सो जाते है जूठमुठ का ..
की मम्मी पापा को बुरा ना लगे..
जिनके घर में मिठाई नहीं आती..
जिनके घर पे ५० रुपिया का तोरण नहीं बंधता.
जिनके घर कोई आता भी नहीं ..
पर फिर भी सब एक दुसरे के साथ मुस्कराते है जैसे कुछ हुवा ही ना हों..
नीता कोटेचा
खाली सा लगता है

क्यों सब कुछ खाली सा लगता है..
आंखे भरी है आँसू ओ से फिर भी आँखो में शुन्यता
है ,

दिल है दर्द और ख़ुशी यो से भरा..
फिर भी दिल वीरान लगता है..

बाहों में जुल रही है कितनों की बाते..
जिसे गले लगाकर हम फिरते है पूरा दिन..
फिर भी एक अकेलापन सा लगता है..

जब भी तलाशती हुं खुद को..कभी अकेले में..
तो वो अकेलापन जैसे घुटन सा लगता है..

छोड़ दिया है अब खुद की परेशानियों को सोचना..
दिन रात जैसे जिंदगी का सिर्फ आना जाना लगता है..

नीता कोटेचा..
यु तो जिंदगी ने दर्द मुझे दीया नहीं कभी,
ये तो बातो बातो में जिंदगी बया हों गई..
तुमने मुस्कराना सिखाया था, चलो अच्छा है रुलाना भी सिखा रिया
शिकायत उसकी भी ना करेंगे की सनम तुमने रुला दिया..
हम तो उनके करीब रह कर भी उन्हें छु ना सके,
पता ही ना था की वो मेरे है या नहीं..
रोज एक खवाब तेरा देख ही लेती हु मै,
चलो ऐसे ही खवाहिशे पूरी कर लेती हु मै..
इस तरह से किसीकी जरुरत महेसुस हुई मुझे ,
जैसे की आखरी सास की तमन्ना अधूरी हों...