जैसे जैसे अंधेरी(मुंबई ) स्टेशन नज़दीक आता गया मौनी के मन में घबराहट वैसे वैसे बढती जा रही थी , मौनी अंधेरी के एक कॉलेज में प्रोफेसर थी .कॉलेज में सब उससे डरते थे|पर पिछले ४ महीनो से मौनी अपने ही कॉलेज के प्रोफ़ेसर गाँधी से..आमना सामना होने पर डरने लगी थी..उसे ये ही डर था कि अगर किसी ने ..या खुद प्रोफ़ेसर गाँधी ने उसे चोर नज़रो से देखते हुए ... देख लिया तो..??????
मौनी को वो दिन याद आता था जब उसकी मम्मी उसे कहती थी "मौनी शादी कर ले., मेरे लिये तू शादी नहीं करके गलती कर रही हो ,मेरे जाने के बाद तुम पूरी जिंदगी अकेली कैसे जीएगी .और उम्र बढ़ जाने के बाद कोई मिलेगा भी नहीं...जो तुम्हारा जीवन साथी बन सके..और हर बार मौनी ने मम्मी की बात को सुन कर अनसुना कर दिया .... अब मौनी को बहुत बार मम्मी की बात याद आती थी. ... बहुत बार ऐसा होता था कि उसे लगता था की इस वक़्त कोई ना हो जिसके साथ वो अपने दिल की...अपनी दिनचर्या की सभी बाते उसके साथ कर सके ,...अपने दिल का गम हल्का कर सके..|पर अब बहुत देर हो चुकी थी ....वक़्त उसके हाथो से किसी मछली सा फिसल चुका था ...अब ये बात सोचकर खुद को दुःख देने का कोई मतलब नहीं .... पर दिल और दिमाग की लड़ाई उसके अपने वश में नहीं थी...हमारे ना चाहने पर भी ....दिमाग में उठने वाली सोच खुदबखुद किसी बिन बुलाये मेहमान की तरह उसके करीब चली आती थी ...|
कभी कभी दिल करता था की बच्चों से थोडा हँसी .. मज़ाक करे ..उनसे बाते करे ...पर कभी ऐसा वो कर नहीं पाई .....पूरी जिन्दगी खुद को उदासी के खोल में बंध रखा औरअपनी गुस्से वाले प्रतिरूप अब यूँ अचानक .कैसे वो सबके सामने थोड दे |प्रोफ़ेसर गाँधी का यूँ अचानक उसकी जिंदगी में ...उस से पूछे बिना आना,...उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि अब ये ४४ की उम्र में किस्मत उसे क्या दिखाने वाली थी? प्रोफ़ेसर गाँधी अपनी उम्र के ४७ साल पूरे कर चुके थे ..,,उन्होंने भी शादी नहीं की थी |जैसा वो पहले दिन से सुनती आई थी कि प्रोफ़ेसर बहुत गुस्से वाले है ...पर उनसे मिलने के बाद पता चला कि ...वो बहुत ही हँसमुख इन्सान थे..बिंदास हँसते और हँसाते थे और मौनी ने तो अपनी जिन्दगी में कभी किसी को हँसते हुए देखा ही नहीं था....जिसकी वजह से अब मौनी हँसना ही भूल गई थी..|
कभी कभी जिन्दगी के आस पास हम ही ऐसा वातावरण खड़ा कर देताहै कि ना चाहते हुए भी उसी के मकडजाल में फसं कर रह जाते हैं |
अंधेरी स्टेशन आ गया ....वो दरवाजे के पास ही खड़ी थी और उसने देखा प्रोफ़ेसर गाँधी तो पहले से ही उसका इंतजार कर रहे थे....बहुत दिनों से उन दोनों का ये नित्य क्रम हो गया था....वो ध्यान भी तो बहुत रखते थे मौनी का..
वो जब जब मिलते थे तब तो जैसे मौनी हँसने के अलावा कुछ काम ही नहीं करती थी..और अलग होने के बाद भी तो वो दोनों दिन में दो बार फोन पर बात कर ही लेते थे..
मौनी कभी कभी अपने इस रिश्ते को लेके डर सी जाती थी..पर जब भी प्रोफ़ेसर को देखती वो डर भूल जाती....ना चाहते हुए भी वो दिनोदिन उनके करीब होती जा रही थी ...रोज कॉलेज के लिये जल्दी निकलना .. दोनों का साथ में मिल के चाय नाश्ता करना और फिर कॉलेज में एक साथ जाना .....
आज भी जब से मिले तब से मौनी का हँसना ही शुरू था..दोनों नाश्ता कर रहे थे तभी प्रोफेसर ने मौनी से पूछा ''मौनी, तुमने मुझे ये तो बताया कि तुमने शादी नहीं की ..अपनी मम्मी के लिये,पर तुमने मुझ से कभी नहीं पूछा कि मैंने शादी क्यों नहीं की..?"
मौनी की धड़कन जैसे रुक सी गई, उसे पता नहीं था कि प्रोफ़ेसर अपनी बात किस रूप में उसके सामने रखेगे ...वो ये तो जानती थी कि ये बात कभी ना कभी तो उठेगी ही|
मौनी ने खुद को संभालते हुए कहा कि " आप ही बता दो कि ''क्यों नहीं की शादी ?"
तब प्रोफ़ेसर ने कहा " मुझे एक लडकी पसंद थी जो मेरे साथ पढ़ती थी., उसकी शादी किसी और से हो गई..तब से मै किसी और मै फिर कभी किसी को अपने ह्रदय में स्थान नहीं दे पाया|
मौनी ने प्रश्नवाचक नज़रों से उनकी तरफ देखा जैसे पूछ रही हो "क्या अब वो प्यार तुमने मुझे में भी नहीं देखा ?
तभी प्रोफ़ेसर बोले " नजरो से मत पूछो मौनी जो पूछना है जोर से पूछो ना..".....कुछ देर की खामोशी और स्त्बधता के बाद मौनी की नजर शर्म से झुक गई ..|
तभी प्रोफ़ेसर ने अपने हाथ से उसका चेहरा ऊपर किया..मौनी जैसे कांप सी गई..पहली बार उसको किसी पुरुँष ने छुआ था.. उसने डर और हया से अपनी आँखे बंद कर ली|तभी प्रोफ़ेसर ने कहा " मौनी शायद भगवान को ये ही मंज़ूर था कि हम दोनों मिले इसीलिए हमारी शादी उस वक्त नहीं हुई ..अब हमें सच्चे साथ और साथी के प्यार की जरुरत है जो हमें एक दूसरे से ही मिल सकती है..अब हम जिंदगी को अच्छे से समझने लगे है ..इस से पहले कि वक्त हमें फिर से अकेला कर दे उससे पहले आयो ..... हम एक हो जाए..
और उस वक़्त प्यार और विश्वास की डोर में बंधी मौनी ने प्रोफ़ेसर का हाथ कस के पकड़ लेती है .
1 comment:
नीता ..पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया की तुम अपने साथ मेरा नाम जोडती हो
पर हर बार की तरह इस बार भी कमाल के भाव और अपने लिखनी से अच्छा लिखा है तुमने
बधाई ....एक और अच्छी कहानी के लिए
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