Monday, March 28, 2011

भूल

अहमदाबाद एक्सप्रेस बहुत तेजी से अपनी मंज़िल की और बढ़ रही थी पर वनिता के मन में चैन नहीं था..ना आँखो में नींद थी...बस बीस साल पहले की बाते जैसे आँखो के आगे से एक पिक्चर की तरह आ जा रही थी...उसने अपनी सोच से बचने के लिये आँखे जोर से बांध कर ली ....आँखे बंध करने से सोच अटकती कहाँ है ?और बंध आँखों से भी सोच ने वनिता को जैसे घेर लिया और अपने अतीत के शिकंजे से वनिता खुद को ना बचा सकी..वो सोच रही थी कि कभी रिश्तो में हम ऐसे उलझ से जाते है कि हमें खुद को पता ही नहीं चलता की हम सही है या गलत..........|.
और उसे याद आ गई सारी बाते....वनिता के मम्मी पापा का देहांत हुआ तब वो सिर्फ १२ साल की थी.....अब घर में चाचा और वो दोनों
ही बचे थे .. ..चाचा भी कहाँ ज्यादा बड़े थे.....बस उससे सिर्फ ८ साल बड़े..पर चाचा ने सब बहुत अच्छे से संभाल लिया था.और उसे याद आ गई सारी बाते....अब घर में वनिता की कोई भी बात हो तो .. आख़िरी निर्णय उसके चाचा का ही होता था..और चाचा की बात वो मान भी लेती थी..वो चाचा भतीजी से ज्यादा तो दोस्त थे एक दूसरे के..बस चाचा ही उसकी जिन्दगी थी|
ऐसे ही जब वो एक दिन सुबह सो कर उठी थी तो उसने देखा था कि उनके कई रिश्तेदार घर आये हुए थे..और जाते वक्त कहते गए कि आज शाम को चाचा को देखने कोई लड़की वाले आने वाले है .... वनिता इस बात को तो भूल ही गई थी की चाचा की जिन्दगी में उसके अतिरिक्त दूसरी लड़की भी कोई आ सकती है उसे ऐसा लगता था कि जैसे वो और चाचा ही पूरी जिन्दगी साथ साथ रहने वाले है ......|
और कुछ दिन के बाद चाची आ ही गई.....चाची का आना वनिता को पसंद नहीं आया |अब चाचा को उसके लिये कहाँ वक्त था....वनिता को दुःख इस बात का था की चाचा को पता भी नहीं था कि उसके दिल पे क्या बीत रही थी..
थोड़े दिन बाद चाची को वापस उसके मायके वाले अपने घर ले गए और कह के गए की हम ८ दिन बाद छोड़ के जायेंगे..अब वनिता खुश थी की अब वो चाचा के साथ अकेली रह सकेगी....|
जिस दिन चाची गई उस दिन वनिता ने बहुत अच्छा खाना बनाया..खाना खाने के बाद दोनों थोड़ी देर साथ में बैठे बात करने के लिये..चाचा उसे सब पूछ रहे थे कि कैसी चल रही है पढ़ाई...घर आने और जाने का वक़्त उसकी सहेलियों के बारे में और भी बहुत कुछ..
तभी चाचा को बीच में रोकते हुए वनिता ने कहा " कितने दिनों बाद आप ये सब मुझ से पूछ रहे हो..कहाँ खो गए हो आप?"चाचा ने हँस के जवाब दिया"वनिता अब मेरी भी जिम्मेदारी है,...मुझे तुम्हारी चाची की तरफ भी तो ध्यान देना है ना.अब तुम्हारे लिये तुम्हारी चाची है ना..उसके कहो अपने मन की बाते ..अपना सारा दिनचर्या अपनी चाची से कहो ...वो भी खुश हो जाएगी .. ..तभी वनिता बिच में ही बोल उठी" जरुरत क्या थी शादी करने की ? क्या मै नहीं थी आप के लिये ?" चाचा जोर से हँस पड़े..और बोले"विनीता मेरी भी कुछ जरूरत होती है जो तुम पूरा नहीं कर सकती हो.."
और वनीता ने कहा" एक बार कहा तो होता सब ख़्वाहिश पूरी करती आपकी मै..मै भी अब छोटी नहीं हूँ "|और वनिता की बात सुन कर चाचा झटके से खड़े हो गए और कुछ भी बोले बिना गुस्से में अपने कमरे में चले गए
वनिता भी उनके गुस्से से डर गई..तब तो अपने कमरे में चली गई पर पूरी रात सो ना सकी..सुबह होते होते उसे नींद आई..जब उठी तो उसने देखा ८ दिन बाद आने वाले चाची घर वापस आ गई थी ....वनिता समझ गई कि चाचा ने ही उनको बुला लिया होगा..दो दिन बीत गए उसने देखा चाचा उसके साथ बात नहीं कर रहे थे..|और तीसरे दिन
वनिता घर छोड़कर निकल गई..
पूरे रास्ते
वनिता वो ही तो सोच रही थी कि क्या क्या नहीं हुआ इतने सालो में उसके साथ.. कितने लोग आये उसकी जिंदगी में ..जब चाचा के घर से निकली थी तब क्या था उसके साथ ... बस एक सहेली का साथ ..उसीने तो उसे मुंबई भेजा था..वहां जाने के बाद पहले दो दिन वो सहेली के साथ उसके मामा के घर रही और दो दिन के बाद उसने वहां की एक हॉस्टल में उसे जगह दिला दी..और फिर एक ऑफिस में काम.. आहिस्ता आहिस्ता ऑफिस वालो के साथ दोस्ती हों गई.....काम ज्यादा करने लगी.....पैसे कमाने लगी और किराये पे अपना छोटा सा घर लिया..बीच बीच में अपनी सहेली से चाचा का हाल जानती रहती थी..उसके चाचा वनिता के जाने के बाद पागल से हो गए थे... ..कहीं से वनिता का पता मिल जाये इसके लिए वो कितनी बार उसकी सहेली से उसके बारे में पूछ चुके थे.....कि वनिता का कोई समाचार मिले तो जरुर बताना.....समय जैसे अपनों को भी दूर कर देता है वैसे ही थक हार कर ... आहिस्ता आहिस्ता चाचा ने भी उसकी सहेली से भी बात करनी बंध कर दी थी |.पर इस बार उसी सहेली ने आ कर उसे ये खबर दी कि अब उसके चाचा बहुत बीमार है जब से वो घर छोड़ के गई है .....
ये सुन कर खुद पे काबू नहीं रख पाई वनिता और सहेली कि गोद में सर रख कर फूट फूट रो पड़ी ......जैसे बरसो का रुका सैलाब अपने किनारे तोड़ कर बाहर आ गया हो|अब उसके सामने सबसे बड़ा प्रशन ये ही था कि वो घर कैसे जैसे ..चाचा चाची का सामना कैसे करे ..उनसे नज़रे कैसे मिलाये? बहुत बार अकेले में सोचती थी की गलती किसकी थी उसकी ...उसकी उस उम्र की या उसकी सोच की..चाचा ने तो कभी कोई गलत व्यवहार नहीं किया था.. तो उसे ये आकर्षण कैसे हों गया था?..उसके दिमाग में तब एक ही बात थी की चाचा सिर्फ मेरा ही है..वो और किसका हों ही नहीं सकता और उसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार थी....चाचा ने भी तो कभी कुछ समझाने की कोशिश नहीं की...पर अगर चाचा समझाते तो क्या वो उस वक़्त उनकी बातो को समझ पाती ....शायद नहीं. और उसने चाचा को मौक़ा भी तो नहीं दिया की वो उसे कुछ भी समझा सके..बस रुठके घर छोड़ दिया था..और मुंबई आ गई बिना किसी को बताये | ऑफिस में कितने परिणित और बिन परिणित पुरुषो ने उसको प्यार करने की कोशिष की पर ना चाहते हुए भी सब में उसे चाचा ही दिखाई देते थे .पर एक इंसान ने आ कर ...उसकी सोच ...उसका अपने चाचा को देखने का नजरिया ही बदल के रख दिया ..तब उसे पता चला कि प्यार क्या है..और अपनों की देखभाल और उनको संभाल के रखने की जिम्मेवारी उसे उम्र की इस पड़ाव पर पता चली कि वो चाचा को अपने साथ गलत सोचती रही अब तक |पर कल अचानक ही उसकी सहेली ओफिस आ पहुंची और वनिता का हाथ खींचते हुए उस से बोली कि ''वनिता चलो तुम्हारा चाचा बस आखरी सांसें गिन रहे है और शायद तुम्हारा इंतजार है उन्हें......और वनिता सब कुछ छोडके अहमदाबाद की ओर दौड़ पड़ी थी.उसे कल ही पता चला था कि चाचा बहुत ज्यादा बीमार है..और उसे याद कर रहे है..घर पहुँच कर उसने देखा तो चाचा बिस्तर पे लेटे हुए थे..जैसे दिखाई भी नहीं दे रहे थे..और चाची बहुत रो रही थी ..वनिता को देख कर वो उसके करीब आई और बोली " वनिता तुम्हारे जाने के दिन से वो ऐसे ही बिस्तर पे है..और एक ही बात पूछ रहे है.की वनिता को संभालने में मेरी कहाँ गलती हुई?वनिताकी आँखो में ये सुन कर आंसू आ गए..और चाचा के पास जा कर बोली.." चाचा गलती आपकी नहीं थी गलती मेरी सोच में थी मुझे माफ़ कर दो.." और चाचा ने उसके सर पे हाथ रखा और आखिरी साँस ले ली..जैसे एक बोझ से मुक्ति मिल गई......|
नीता कोटेचा "नित्या"

4 comments:

रश्मि प्रभा... said...

marmsparshi kahani

Unknown said...

Dear Friend

I have read yr Article 'BHUL' –its really heart touching

Antar ka davand or emotion ko kaagaz pai utaar kar Paatk ka man maadhurya karnai ki kala admirable hai.
Ya ek saadana ha.. sabad kya hai aur sabadho sa antar man ka bhav ka avataran kaisa hota hai? Isi parsan ka aaspaas rahatai hoa saahitya kaar vivachana kartai hai..
Paatak bhi lekhaj ki savadna ka saath zurana chaahata hai.. Lekhaj(writer) nai jo bhugatkar ya sahakar likhata hai paatak bhi usi abhaas ka saath us dard ka aihsaas chhahata hai.. Donoa kaa samanvaya hi writer ki sachi uplabdhee hai?

Tks Good Luck
Inder Baid

DAISY ki batey DIL sein said...

यह तन कें रिश्ते कब दिल पर जम जाते हें
पता ही नहीं चलता!
वो उम्र ही ऐसी होती हैं...
तुम ही लिख सकती होन...

Anju (Anu) Chaudhary said...

dil ko chu lene wali lekhni neeta
bahut khub asie hi likho hameshaa
ishwar ki kripa bani rahe tum par