Thursday, October 25, 2007

जिदगी से खेलकर

जिंदगी से खेलकर कितने लोग चले गये
कोई हमरे लिए ठहेरा नही ।
और हम वाही ठहर गए,
दुनिया चल रही है अपनी तरह ,
किसीने हमे अपना कहा नही।
और

हम सबको अपना बनाते चले गए।

नीता कोटेचा

5 comments:

સુરેશ જાની said...

नीताजी !
पहली बार आपका यह ब्लोग देखा. आपने तो बहोत तरक्की कर ली ।
शेर भी बहोत अच्छे लगे ।
अभीनंदन ।

નીતા કોટેચા said...

dadaji ketla varsho thi lakhu chu.
kadar hamna thai em kaho.
neeta.

Sapience Exults said...

Wah bohoot khoob...

...* Chetu *... said...

very nice...!..keep it up.!

pheena said...

Neetaben i enjoyed reading all ur poem u r master even in hindi very nice keep sending