Monday, February 16, 2009

खुदा, तेरी महेफिल में हम ये फरियाद करते है..
उन सब को खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..

तेरी महेफिल में सर जुकाया हमने इसलिए
क्योकि तेरे बनाए हुवे जहा को तेरे ही लोग रोंद रहे है..

हमने कहा वो सबको खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..
तो खुदा मुझे इतना बता दे की जो तुम्हें याद करते है
वो
ऐसे कैसे होते है...
की लोगो का खून भी बहेता है तो उनको कोई फरक नहीं पड़ता.

अब क्या कहू खुदा ऐसे लोगो के लिए..
पर हम तो तेरे सच्चे बन्दे है...
तो ये ही दुआ करते है
की
कैसा भी हो वो..
पर
उन सब को खुश रखना जो तुम्हें याद करते है..

नीता कोटेचा..

Sunday, February 15, 2009

दिल में हो सुकून तो दिन में तारे लगते है..
और जो हो बेचेनी तो अपने भी पराये लगते है...
खुद ही खुद की छबी देखके ,
खुद को भी पहेचानते नहीं हम..
क्योकि जब खुदा हो रूठा तो
चलती सास भी भारी लगती है..

नीता कोटेचा
जब से तुम्हें दिल में बसाया हमने ,
हसना भूल गये और रोना भी भूल गये..

दुनिया ने इस तरह से सताया की तुम्हें भूलना भूल गये..

पल पल उन्होंने दिए ताने तुम्हारे नाम से ,
की तुम एक पल दूर न हो सके मुझसे..

दूर हो गये हो हर पल के लिए मुझसे..
पर यु दिल में बसे हो जैसे एक ,

चुभता हुवा नासूर जो मीठा लगता हो..

नीता कोटेचा
प्रेम मौन है ..अगर हल्ला हो तो वो प्रेम नही, शायद है दिखावा..

प्रेम लेना नही ..प्रेम देना है..अगर उसमे उम्मीद कि,तो ज्यादा टिकता नहीं ...

प्रेम में भूल जाना है दुनिया को..बस सिर्फ प्रेम करना है एक दूजे को..

गलती देखनी नहीं है दूजे की..ये प्रेम नहीं है
पर
गलतिया दिखती ही नहीं दूजे कि,
इसे ही सच्चा प्रेम कहेते है (मेरे विचारों से..)

नीता कोटेचा

शरीर या सिर्फ आत्मा.

अगर मै आत्मा हु तो मै रोता नहीं हु ..
और
अगर मै अभी भी शरीर हु,
तो हा मै रोता हु..
बहार से भी और अन्दर से भी...
और वो रोना कभी भी बंध नहीं होगा..
खुद तलाशिये खुद में की हम क्या है...
शरीर या सिर्फ आत्मा. ...

नीता कोटेचा..

Monday, February 9, 2009


नमस्ते दोस्तों
मै आपकी दुनिया में पहेली बार प्रवेश कर रही हु...मेरा नाम यशोदा पलन ..मै लेखिका और कवियत्री हु ..मेरी दो पुस्तक गुजराती में प्रकाशित हुई है ....
अगर आप मुझसे मिले होते तो आपको ऐसा लगता की ये कैसे लिखति होगी?क्योकि मै फिजिकली hendIkep हु ..सात सल् की आयु से ही रुमेटोइड आर्थ्राईटीस नामकी बिमारी मुझे हो गई थी...तब से मै बिस्तर पे ही हु...दोनों पैर गुटने से मुड़ते ही नही है ..दाहिना हाथ सीधा ही रहेता है और उसी हाथ की दो पहेली उंगलिया
हमेशा मुडी हुई रहेती है..और वो ही मुडी हुई उंगलिया के बिच्मेही पेन पकड़ कर लिखति हु ..इतने सालो से ऐसे ही कहानिया लिखके ,लेख लिखके जो मिलता था उससे घर चलता था मतलब खाना मिल जता था..पर अबा मेरी आखो का रेटिना दुर्बल हो गया है..और आखो की रौशनी को बचाने के लिए मुझे डर दो महीने में एक बार इंजेक्शन लेना पडेगा..डॉ ..कम करके भी मुझसे ५०००/ एक इंजेक्शन का कह रहे है..एक साल का इंजेक्शन मतलब ३०,००० Rs ..जो अब मेरे बस की बात नही रही..पर आख़ ही मेरा जीवन है...तो क्या आप मुझे मेरी आखों को बचाने के लिए मदद कर सकते हो???
अगर किसीको भी मुझसे मिलना है तो नीता आपको मेरे घर तक जरुर ले आएगी
मेरा add

यशोदा पलन
डी लोहाना परिषद्
पहेला माला ,रूम नम्बर ३९.. एन एस रोड
मुलुंड वेस्ट
मुंबई ..४०००८०
मेरे डॉ..का नाम है

डॉ.गौरांग शाह
9820047411

अगर नीता को कुश संदेश देना है तो उसका id है

neetakotecha.1968@gmail.com


Friday, February 6, 2009

वाह रे इन्सान तुम्हें क्या कहू मै.

मुझे शक्ति दे हे प्रभु की मै अपने आजू बाजु की बुराइयों को सह सकू..
मिटाना तो मेरी बस की बात नहीं..
तो अब एक ही रास्ता बचा है की मै उसमे ही जीना सिख लू..
पर क्या ये मेरा सही स्वाभाव है...
तो क्यों देते है हम सब को लालच और लाच ...
क्यों हम ही गंदकी फैलाते है और कहेते है अपने देश में तो कुछ है ही नहीं...
हम इतने ख़राब क्यों है की अपनी ही धरती को हम पहेले गन्दा भी करते है और फिर गाली भी...देते है
वाह रे इन्सान तुम्हें क्या कहू मै..

नीता कोटेचा..