आज अचानक अपनी यादो की गली से गुजरना हुवा था..
पर देखा तो शहर की तरह उसके रस्ते भी बहोत बदल गये थे...
अपनी यादो का तो कोई ठिकाना ही नहीं था..
और न तुम्हारा..
बस मै तो वहा अकेली थी जिसे मै पहेचानती थी..
फिर मैंने सोचा की वापस खो जाऊ ये गलियों में.
इससे अच्छा है की रास्ता ही बदल लू...
और मैंने रास्ता बदल लिया ..
एक टीस जरुर है,
पर,
उतनी नहीं जीतनी तुम पास होते और मेरे न होते ये देखने से होती...
नीता कोटेचा
पर देखा तो शहर की तरह उसके रस्ते भी बहोत बदल गये थे...
अपनी यादो का तो कोई ठिकाना ही नहीं था..
और न तुम्हारा..
बस मै तो वहा अकेली थी जिसे मै पहेचानती थी..
फिर मैंने सोचा की वापस खो जाऊ ये गलियों में.
इससे अच्छा है की रास्ता ही बदल लू...
और मैंने रास्ता बदल लिया ..
एक टीस जरुर है,
पर,
उतनी नहीं जीतनी तुम पास होते और मेरे न होते ये देखने से होती...
नीता कोटेचा
4 comments:
yaadon ko bade jatan se sanjo liya,bahut achhi
एक टीस जरुर है,
पर,
उतनी नहीं जीतनी तुम पास होते और मेरे न होते ये देखने से होती.
अल्फाज मजा
असर उसको जरा नहीं होता.
रंज राहत फजा नहीं होता.
तुम हमारे किसी तरह न हुए,
वरना दुनिया में क्या नहीं होता.
नारासाई से दम रुके तो रुके,
मैं किस से खफा नहीं होता.
तुम मेरे पास होते हो गोया,
जब कोई दूसरा नहीं होता.
Pragnaju
सुंदर रचना.
bahut achha likhti hai aap ek ek shabdo ki awaaj kahti hai kuch ...aap ki laikhni ki kala bahut badiya hai
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