Monday, January 5, 2009

डर लगता है कही कोई दोस्त दूर ना हो जाए वापस.
और भरी दुनिया में हम अकेले न हो जाए वापस.
.ये दुनिया बड़ी है जालिम ए दोस्त ..
इसीलिए सोचती हु की,
जो नजदीक है वो भी दूर न हो जाए वापस --

नीता कोटेचा

1 comment:

Unknown said...

वाह
इतना कि हमसफ़र मेरा भी, अज़ार हुआ
एक लम्हा भी न गुज़रा और वो जुदा हुआ
वो गया क्या...
अब तो खुद से भी जुदा हूं मैं
कितना बेबस और तन्हा सा हूं मैं
अब, मुझे डर लगता है
प्रग्नाजु