सबसे पहेली बात मै ये कहेना चाहूंगी की मेरी हिंदी ज्यादा अच्छी नही है..पर मेरे हिंदी भाषी दोस्तों ने कहा की नीता तुम्हारी कहनिया हम कैसे पढ़ सकेंगे ,हमें तो गुजराती आती ही नही ..तो अगर तुम उसे हिंदी में लीखो तो ज्यादा बहेतर होगा..तो आज पहेली बार कोशीश कर रही हु ..तो अगर ग़लत हिंदी हो तो मुझे क्षमा कर दीजियेगा
और उसे थोडा बरोबर करके पढियेगा॥[:)]
और दूसरी बात मेरी सारी बाते सत्य बात होती है..कोई काल्पनिक बातो को मै नही लिख सकती..सब देखी हुई बातें है..ये भी एक सत्य बात ही रजु की हुई है..
१)
"हे भगवान आज वापस जगडे ,पता नही ये दोनों को क्या है ??ना उपरवाले ने बच्चे दिए है की उनके कारण कभी जगडे हो ..पर ये दोनों अकेले रहेते है..पर शाँति से जी नही सकते."वनिता ने अपने पति अमर को कहा..
"अरे पर तुम्हे क्या? देखना अभी थोडी देर में भाभी यहाँ आयेंगे और क्या क्या हुवा उनके घर में वो सब तुम्हे बताएँगे..नही तो उन्हें भी कहा तब तक शाँति मिलेगी "वनिता के पति अमर ने कहा..
और वो ही हुवा ..दस मिनिट में भारती भाभी आए ..और वनिता के बाजू में बैठके रोने लगे ॥
वनिता ने कहा' भाभी रोइए मत ॥ तुम्हे तो मालुम है न की शैलेश भाई के मन में कुछ नही होता..रातको घर पे आयेंगे तब उन्हें तो यादा भी नही होगा। की सुबह जगडा हुवा था॥"
तभी भारती भाभी ने कहा"हां वनीता ठीक है ,उनको याद नही रहेता..पर रोज ऑफिस जाते वकत वो जगडा करके जाते है..और ख़ुद तो रातको हसते हुवे आयेंगे पर मै पूरा दिन वो ही खयालो में बिताती हु..और जान जलाती रहेती हु..कब वो सुधरेंगे वनीता॥"
वापस वनीता ने उन्हें समाजाने की कोशिश की "भाभी देखिये ,आदमी लोग भी तो पूरा घर चलाते है..पुरी जिंदगी बहार काम करने जाते है,उनको कैसे कैसे लोगो से बातें सुननी पड़ती है..तो अब वो गुस्सा घर वालो पे ही निकालेंगे..हमें कहा ज्यादा देर उनका गुस्सा सहेना है..देखो अभी चले गए तो रातको आएंगे..भूल जाइए ..और चलो अभी मै आती हु आपके घर में ,साथ में मिल के खाना खाते है॥"
इस बिच अमर एक ग्लास पानी भरके भारती भाभी को दे के गया..और वनीता के सामने चोरी से थोडा हस ही लिया..क्योकि ये रोज का क्रम ही हो गया था सब कुछ...
भारती भाभी घर पे गए ..और थोडी देर में वनीता के घर का फोन बजा।
वनीता ने फोन उठाया ..तो सामने शैलेश भाई थे.शैलेश ने कहा "क्या भाभी ,वनीता का प्रोग्राम ख़तम हुवा की नही..गई वो घर पे..अगर आपके घर में है तो कुछ मत बोलिएगा..मै बाद में फोन करूँगा..."और शैलेश भाई हस रहे थे॥"
वनीता ने कहा "क्यों शैलेश भाई आप उसे रोज परेशान करके जाते हो और ऊपर से हस रहे हो..यहाँ उनकी जान निकल जाती है रो रो के..मै ही आज आपको फोन करने वाली थी.. "
अभी तक शैलेश जो हस रहा था, वो अचानक चुप हो गया ..और उसने कहा.."भाभी ,अगर मै उससे जगडा करके नही जाउंगा.तो भी वो रोने वाली तो है ही..वो हमें बच्चे नही है उसके लिए रोएगी..ये तो मै जगडा करके जाता हु तो कमसेकम विषय तो बदली होता है..वो कारण से रोए.. इससे अच्छा है मेरे जगडे के कारण रोए....मै तो रातको आके मना ही लूँगा न उसे..चलो अब मै फोन रखता हु, जरा उसे संभालना.."
और सामने से फोन बंध हो गया..
और वनीता सोच में पड गई की शैलेश भाई कितना प्यार करते है भाभी से ,कितना दूर का सोचते है..मुझे तो ये ख़याल भी नही आया॥
ऐसे ही भारती को सँभालते संभालते शाम हो गई ..सब अपने काम में व्यस्त हो गए।
रात को ८ बजे भारती भाभी आए ..और वनीता से कहा देखो देखो...आज तुम्हारे भाई साहेब हमारे लिए कितनी प्यारी सारी ले के आए..और जैसे सुबह कुछ हुवा ही नही था इस तरह से वो वनीता से बाते करने लगी॥
और वनीता भी दिल में मुस्करा रही थी।और सोच रही थी की ये कैसा संसार है..कभी हमें उसी आदमी के लिए ये ख़याल आते है की हम क्यों जीते है इसके साथ।?? और कभी वो ही आदमी हमें कितना संभालता है..कितनी बार हमारी सोच बदलती है..
ऐसे ही दुसरे ६ महीने बीत गए।
एक बार रातको १ बजे अचानक जोर जोर से बेल बजने की आवाज आई ..वनीता और अमर भी डर गए की ये वक्त कौन आ सकता है..दोनों ने दरवाजा खोला.तो भारती भाभी रोते रोते खड़े थे..और बोल रहे थे "वनीता जल्दी चलो तुम्हारे भाई को कुछ हो गया है॥"
वनीता और अमर दौड़ के उनके साथ गए॥
वहा जाके देखा तो शैलेश भाई जमीन पे गीरे हुवे थे।
उन्होंने तुंरत डॉ। को फोन किया..और डॉ। ने आके कहा की "शैलेश भाई अब इस दुनिया में नही रहे.. "
और भारती भाभी पे तो जैसे आसमान टूट पडा..उनको संभाला नही जा रहा था वनीता से॥
भारती भाभी रोते रोते बोल रहे थे की वनीता इनसे कहो की मेरे साथ जगडा करे..ऐसे चुप ना रहे॥
मै नही जी सकती इनके जगडे के बिना॥
वनीता को पता नही चल रहा था की कैसे संभाले .. भारती भाभी को॥
अमर ने उनके सब रिश्तेदारो को फोन किया.सब को आते आते सुबह हो गई.
मुशकिल से भारती भाभी ने शैलेश भाई की अंतिम यात्रा निकालने दी.
पर अभी भी भारती भाभी एक ही बात बोल रहे थे ..वनीता अब मै कैसे जीयूँगी उनके बिना.कौन मेरे साथ जगडा करेगा..और कौन मुझे प्यार करेगा॥
वनीता से उनकी बातें बर्दास्त नही हो रही थी..और साथ में शैलेश भाई ने जो उसे फोन पे बताया था.वो सब याद आ रहा था ..
वो दूसरी रात वनीता ने सोचा की आज इनके पास ही सो जाती हु..और वो भारती भाभी के घर ही रुक गई॥
सुबह वो उठी तो अभी भरती भाभी सो रहे थे..तो उसने सोचा चलो मै थोड़ा कम करके आऊ घर का..फ़िर वापस आती हु और भाभी के साथ ही रहूंगी...
और वनीता अपने घर गई..करीब १ गंटे बाद वो वापस आई तो देखा की भारती भाभी अभी भी सो रहे थे॥
अब उसे लगा उनको उठा देना चाहिए॥
और वो उनको उठाने उनके करीब गई..और जैसे उसने भारती भाभी को छुवा ..उनका बदन एकदम ठंडा था।
वो एक रात भी शैलेश भाई के बिना नही काट सके..
Monday, March 30, 2009
शिकायत करनी न आई तो लोगो ने समजा दर्द नहीं है..
और आसु में हम खुद को डुबोते चले गये..
ना उन्हें पता चला की हम तड़पते है उनके लिए ...
और naa हमने बताना जरुरी समजा..
क्यों कुछ बोलके बताये की ,कितना प्यार है हमें तुमसे..
हमारे जनाजे पे आके देख लेना..
वहा भी तुम्हें हमारे प्यार का अहेसास मिल ही जायेगा..
नीता कोटेचा.
और आसु में हम खुद को डुबोते चले गये..
ना उन्हें पता चला की हम तड़पते है उनके लिए ...
और naa हमने बताना जरुरी समजा..
क्यों कुछ बोलके बताये की ,कितना प्यार है हमें तुमसे..
हमारे जनाजे पे आके देख लेना..
वहा भी तुम्हें हमारे प्यार का अहेसास मिल ही जायेगा..
नीता कोटेचा.
Tuesday, March 10, 2009
मेरी माँ
मैंने एक बार माँ से कहा :माँ मुझे अपनी गोद में सुला लो..
मै थक गई यहाँ की मतलबी दुनिया से और मतलबी लोगो से.."
तो माँ ने कहा"बेटा, ये तो वो लोग है जो जिन्दगी जीना सिखाते है..
मै कैसे तुम्हें उनसे दूर रखु..तुम फिर कभी लड़ ना पोगी.."
तो मैंने कहा "माँ मुझे नहीं लड़ना इन लोगो से जो मेरे नहीं है पर मेरे होने का अहेसास जताते है.."
तो माँ ने कहा" ये अहेसास ही काफी है, यहाँ तो लोगो को मतलबी लोग भी नहीं मीलते..
तुम जियो इन्ही के बिचमे..
तब ही तुम सिख पोगी दुनिया में जीना.."
मै नाराज़ हो के चल रही थी तब माँ ने कहा..
"जाओ मत दो पल सो जाओ मेरी गोद में..इससे तुमसे ज्यादा मुझे सुकून मिलेगा..मै मतलबी नहीं ..मै तो एक ऐसी इन्सान हु तुम्हारी जिन्दगी की जो हर बार मुश्किलों में सर पे हाथ रखकर मुश्किलों से लड़ना सिखायेगी.."
और माँ देखो ,आज मुझे सब मतलबी ओ के बिचमे भी अपनापन ढूंढना आ गया..
नीता कोटेचा.
मै थक गई यहाँ की मतलबी दुनिया से और मतलबी लोगो से.."
तो माँ ने कहा"बेटा, ये तो वो लोग है जो जिन्दगी जीना सिखाते है..
मै कैसे तुम्हें उनसे दूर रखु..तुम फिर कभी लड़ ना पोगी.."
तो मैंने कहा "माँ मुझे नहीं लड़ना इन लोगो से जो मेरे नहीं है पर मेरे होने का अहेसास जताते है.."
तो माँ ने कहा" ये अहेसास ही काफी है, यहाँ तो लोगो को मतलबी लोग भी नहीं मीलते..
तुम जियो इन्ही के बिचमे..
तब ही तुम सिख पोगी दुनिया में जीना.."
मै नाराज़ हो के चल रही थी तब माँ ने कहा..
"जाओ मत दो पल सो जाओ मेरी गोद में..इससे तुमसे ज्यादा मुझे सुकून मिलेगा..मै मतलबी नहीं ..मै तो एक ऐसी इन्सान हु तुम्हारी जिन्दगी की जो हर बार मुश्किलों में सर पे हाथ रखकर मुश्किलों से लड़ना सिखायेगी.."
और माँ देखो ,आज मुझे सब मतलबी ओ के बिचमे भी अपनापन ढूंढना आ गया..
नीता कोटेचा.
Saturday, March 7, 2009
कितना अजीब लगता है मुझे तो ये शब्द ही महिला दिवस..
साल में एक दिन मनाओ और उसमे भी सभी महिलाए खुश..
जैसे उनमे तो अक्कल ही नहीं है न...
आज भी उनको सुनना पड़ता है की कमाने की लालच में तुमने अपना स्त्रीत्व गुमा दिया है ..
पहेले से प्रथा चली आती थी की पुरुष घर के बहार जा कर कमाता था और नारी घर को संभालती थी..
पहेले जब कोई रिश्ता आता तो पहेले पूछा जाता था की आपके दादा कौन थे ..आपके मामा कौन है...अभी तो शादी के लिए रिश्ते आते है तो पूछा जाता है की आपकी बेटी कौन सी कंपनी में काम करती है कितना पगार है ..
ये है सुधरा हुवा समाज ..
अरे क्यों मनाते है ये दिन..
जब की आज भी भाई के ..या पापा के या फिर पति के मुड के ऊपर स्त्री ओ का दिन अच्छा जायेगा या बुरा जायेगा ये तय होता है...
जैसे नारी पहेले gulaam थी उतनी ही आज भी है..
आज भी टीवी में बालिका बधू और लाडो जैसी सीरियल दिखाते है मतलब की कही ऐसा हो रहा है वो सही है..और वो ही सोच के बुरा लगता hai ..
एक बेटी जब २१ सल् की होती है तो आज भी सब बाजू से आवाजे आने लगती है की अब कितना इंतजार करोगे ..शादी तय कर लो..जैसे शादी के अलावा जिन्दगी का कोई हेतु ही नहीं है दूसरा..
क्यों ये सब दिखावा होने देते है हाम मुझे वो ही पता नहीं चलता.
आज का दिन है जब हम ये दिन का विरोध करके अपना आक्रोश जता सकते है...
लोग मुझे कहेते है की नीता तुम क्यों इतना कड़वा बोलती हो...
पर मुझसे ये आडंबर की दुनिया नहीं सही जाती है...
मै नहीं मना सकती जूठ मुठ के दिन, क्या करू??
अगर हम नारियाँ एक हो जाए तो किसी भी पुरुष में इतनी शक्ति नहीं की हमें परेशान कर सके..
और ये शुरुआत हर सास और बहु को करनी है...
साल में एक दिन मनाओ और उसमे भी सभी महिलाए खुश..
जैसे उनमे तो अक्कल ही नहीं है न...
आज भी उनको सुनना पड़ता है की कमाने की लालच में तुमने अपना स्त्रीत्व गुमा दिया है ..
पहेले से प्रथा चली आती थी की पुरुष घर के बहार जा कर कमाता था और नारी घर को संभालती थी..
पहेले जब कोई रिश्ता आता तो पहेले पूछा जाता था की आपके दादा कौन थे ..आपके मामा कौन है...अभी तो शादी के लिए रिश्ते आते है तो पूछा जाता है की आपकी बेटी कौन सी कंपनी में काम करती है कितना पगार है ..
ये है सुधरा हुवा समाज ..
अरे क्यों मनाते है ये दिन..
जब की आज भी भाई के ..या पापा के या फिर पति के मुड के ऊपर स्त्री ओ का दिन अच्छा जायेगा या बुरा जायेगा ये तय होता है...
जैसे नारी पहेले gulaam थी उतनी ही आज भी है..
आज भी टीवी में बालिका बधू और लाडो जैसी सीरियल दिखाते है मतलब की कही ऐसा हो रहा है वो सही है..और वो ही सोच के बुरा लगता hai ..
एक बेटी जब २१ सल् की होती है तो आज भी सब बाजू से आवाजे आने लगती है की अब कितना इंतजार करोगे ..शादी तय कर लो..जैसे शादी के अलावा जिन्दगी का कोई हेतु ही नहीं है दूसरा..
क्यों ये सब दिखावा होने देते है हाम मुझे वो ही पता नहीं चलता.
आज का दिन है जब हम ये दिन का विरोध करके अपना आक्रोश जता सकते है...
लोग मुझे कहेते है की नीता तुम क्यों इतना कड़वा बोलती हो...
पर मुझसे ये आडंबर की दुनिया नहीं सही जाती है...
मै नहीं मना सकती जूठ मुठ के दिन, क्या करू??
अगर हम नारियाँ एक हो जाए तो किसी भी पुरुष में इतनी शक्ति नहीं की हमें परेशान कर सके..
और ये शुरुआत हर सास और बहु को करनी है...
Tuesday, March 3, 2009
Monday, March 2, 2009
बचपन की वो कड़वी यादे
बचपन की वो कड़वी यादे ..लेकर बड़े हुवे...
तो लगता था,
कि
अपना होगा घर..
और अपने होंगे बच्चे...
और हम जियेंगे अपनी तरह..
ना किसीकी डाट सुनने कि ..न कभी फटकार सुनने कि..
अब तो मै जियूंगी अपनी तरह...
पूरा आकाश मेरा और पूरी धरती मेरी...
पर जैसे जैसे बचपन बिछड़ता गया.
पता चला कि वो कड़वी यादे कितनी मीठी थी...
नीता कोटेचा
तो लगता था,
कि
अपना होगा घर..
और अपने होंगे बच्चे...
और हम जियेंगे अपनी तरह..
ना किसीकी डाट सुनने कि ..न कभी फटकार सुनने कि..
अब तो मै जियूंगी अपनी तरह...
पूरा आकाश मेरा और पूरी धरती मेरी...
पर जैसे जैसे बचपन बिछड़ता गया.
पता चला कि वो कड़वी यादे कितनी मीठी थी...
नीता कोटेचा
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