अचानक कोई सामने से आके हस देता है..ना जान ना पहेचान...अचानक कभी कोई मदद कर देता है...जब हम कोई टिकिट की बड़ी सी लम्बी कतार में खड़े हों और अचानक कोई आ कर कहे हमें, की मैंने ये कूपन लिया है ज्यादा है क्या आपको चाहिए... कभी कोए आ कर कहेता है की मुझे ऐसा क्यों लगता है की मैंने आपको कही देखा हुवा ऐसा महेसुस होता है...और हमारे दिल के तार भी हिल जाते है॥कभी कुछ काम कर रहे हों तो ऐसा होता है की ये काम हमने पहेले भी तो किया हुवा है...कभी कोई ऐसी जगह पे जहा हम जाते है जहा पहेली ही बार गये हों पर ऐसा लगता है मै याहा आ गई हु पहेले ... पहेले नेट का कोई विश्व था ऐसा हमें पता नहीं था..पर अब ऑनलाइन हमारे बहोत सारे दोस्त है..ऑरकुट में लाखो लोग है..हम क्यों उसमे से १०० को अपना बनाते है..और उसमे से भी क्यों हम सिर्फ १० से महोब्बात करने लगते है...उसके दुःख से हम दुखी होते है..और उसके सुख से हम सुखी होते है..क्यों एक ही के घर में रह रहे लोग एक दुसरे से बहोत दूर होते है और बहोत दूर रहेने वाले लोग दिल के करीब होते है.. क्या आपको इससे सवाल नहीं होते दिल में ऐसा क्यों होता है हमारे साथ ??
क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..और कोई पराया..क्या इसमें कही कोई जन्म की लेनदेन बाकि रह गई होती है...मै ये मानती हु की हा ऐसा ही है..हमारा अगर किसी जनम का लेनदेन बाकी हों तो ही हम एक दुसरे के सामने मुस्करा लेते है...नहीं तो मुस्कराना भी मुश्किल होता है..तो मै मानती हु की हा कुछ है जिसे हम पुनर्जनम कह सकते है...क्या आप मानते है??
क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..क्यों कभी कोई अपना लगने लगता है..और कोई पराया..क्या इसमें कही कोई जन्म की लेनदेन बाकि रह गई होती है...मै ये मानती हु की हा ऐसा ही है..हमारा अगर किसी जनम का लेनदेन बाकी हों तो ही हम एक दुसरे के सामने मुस्करा लेते है...नहीं तो मुस्कराना भी मुश्किल होता है..तो मै मानती हु की हा कुछ है जिसे हम पुनर्जनम कह सकते है...क्या आप मानते है??
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