दिल्ली रेप के बाद औरतो , बेटियों के लिए दु:ख होता है की कब समाज सुधरेगा और कब सुधरेगी पुरुषो की सोच , हम कितनी बेटियों को यु ही मरते देखेंगे और बस चुपचाप देखते ही रहेंगे।।
द्रोपदी के जमाने से जो चल रहा है वो आज भी चालु है , तब जो दिखाया गया था की घर के देवर और जेठ भाभी की साड़ी खीचते है और तब श्री कृष्णा उनके चिर पुरने आते है , तो मुझे ये समाज नहीं अ रहा की क्या जब देवर और जेठ सारे खिचेंगे तब ही प्रभु आयेंगे।। बहार वालो के लिए नहीं आयेंगे।। ऐसा कोई कायदा होगा क्या प्रभु का ?
ऐसा हो रहा है की अब हम सारी औरतो को ये तय कर लेना चाहिए की बच्चे करने ही नहीं।। क्योकि जनम देने वाला भगवान् जब हमारी बेटियों की रक्षा नहीं कर सकता हम क्यों उनकी श्रुष्टि सँभालने के लिए बच्चे करे , बेटी बचाओ के नारे लगाते है तो बेटियाँ क्या इसी के लिए है ?
जब छोटी थी तब एक कहानी पढ़ी थी की एक आदमी को बहुत सारे लोग पत्थर मार रहे थे , तो किसीने कहा की जिसने कभी कोई गलती न की हो वो पत्थर मारे, तब कोई नहीं आगे आ सका।। तो आज जब ये रेप के खिलाफ बहुत सारे पुरुष भी खड़े है तब हम ये कह सकते है न की जो आदमीने कभी सोच में या मानसिकता में भी किसी बेटी ये स्त्री का बलात्कार ना किया हो वो ही इसका विरोध में आगे आये।। कितने आयेंगे क्या पता?
रास्ते पे चलते हुवे , बस में या ट्रेन में , मंदिरो की भीड़ में हमें बहुत सरे ऐसे मर्द मिल जाते है जो हमें इस तरह देखते है की हमें लगता है की हमारा नजरो से ही बलात्कार हो गया , खुद की पत्नी के साथ चलने वाला पति भी दुसरो की बीवियों को और बेटियों को देखते रहेता है , हम बलात्कार करना तो बांध नहीं कर पायेंगे पर कमसेकम पुरुष खुद ही ऐसा न कारे तो मानसिक बलात्कार तो बंध हो ही सकते है।।
बेटियों और औरतो को ये काम घर से ही शुरू करना है , हमारे ही आजुबाजु के आदमियों में से अगर कोई ये काम करता है तब हमें तुरंत उनको टोकना है , शायद आहिस्ता आहिस्ता सब में बदलाव आयेगा।।
नीता कोटेचा "नित्या"