Tuesday, March 6, 2012

बरसो बाद जब मिले हम उनसे
तो कहने लगे तुम्हारा नाम भूल गये कसम से

हाँ ये वोही शख्स है जो कहते थे कभी
तुम्हे ना भूलेंगे आखरी साँस तक ,भूले चाहे रिश्ते सभी

ये माना के मेरे हाथ में अब उनका हाथ नहीं
पर ये क्योंकर हुआ के मेरी ओर देखने का भी सवाब (रीत ,कांसेप्ट ,रसम ) नहीं

मेरा दर्द , मेरा रंज -ओ -गम वोह क्या जाने अब
मेरे नाम के पन्ने किताब -ए -ज़िन्दगी से फार दिए है जब

ये हिज्र का खेल तो हमारे दरमियान हमेशा से रहा
अपने अपने मक़ाम पर कभी मैं नहीं ,कभी तू ना रहा

मैंने तुम्हें याद रखके किस्मत को मात दे दी ...
तुमने मुझे भूलाकर किस्मत को जीत दे दी ....!!!

~नीता कोटेचा (Write and Concept)
~कशिश खान (Translated in Urdu)

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