"हॉस्पिटल का वातावरण ही कुछ ऐसा होता है जहां जाते ही दिल घबराने सा लगता है..जैसे मंदिर में जाने से खुद ही दिल को शांति सी लगती है वैसे ही हॉस्पिटल में जाने से खुद ही घबराहट शुरू हो जाती है..चारों ओर एम्बुलेंस रहती है कितने लोग रोते रहते है..कोई अकेले अकेले बाते करते रहते है..
आज मीनू का हॉस्पिटल जाना हुआ .. उसकी बेटी की सास की तबियत ठीक न होने से उन्हें भर्ती किया था..बेटी की शादी की हुए अभी ३ महीने हुए थे..जब बेटी और दामाद घूम के वापस आये..१० दिन सब घर का काम बता कर सास और ससुर गावं में खुद के दूसरे घर चले गए..इस बहाने कि बेटे और बहु को थोड़ा अकेले घर में साथ वक्त बिताने का मौक़ा मिले.. पर गावं में जाने के १५ दिन में ही सास को बहुत तेज बुखार आया.. दवाईयाँ की पर कुछ फर्क नहीं पड़ रहा था. तो उनको वापस मुंबई लाया गया. खुद की बीमारी से ज्यादा उनको ये दुःख था की नयी दुल्हन को अभी से ये सब परेशानिया आ गई थी..जब मीनू उसके पास पहुंची , तो बस वो,ये ही बात कहे जा रहे थे कि मै क्यों बीमार हुई..और उनका ये सरल स्वभाव देखकर मीनू को बेटी की किस्मत पर गर्व हो रहा था..की उसे कितने अच्छी सासू जी मिली हैं ...
दो घंटे मीनू उनके पास बैठी रही.. फिर जब वो घर जाने लगी तो लिफ्ट बंद होने के कारण उसको सीडिया से नीचे उतरना पडा. ७ मंज़िल उसे उतरनी थी, वो आहिस्ता आहिस्ता सब की तकलीफ़ देखकर वो उतर रही थी. कहीं बेटी माँ के लिये रो रही थी कहीं माँ बेटी के लिये. कितनी तकलीफ़ थी यहाँ सब के चेहरे पर...
जब तक हम घर से बाहर नहीं निकलते हमें पता ही नहीं चलता की कितनी परेशानियाँ है लोगो को..सीडिया उतरते उतरते उसने देखा सामने से तीन आदमी एक महिला का हाथ पकड़ कर उसे आहिस्ता सीडिया चढ़ा रहे थे...मीनू को ऐसा लगा की जैसे उसने उस महिला को कही देखा है.. जैसे जैसे वो लोग नज़दीक आ रहे थे वैसे उसे याद आ रहा था ..और उसे याद आया की ये तो उसकी सहेली जो स्कूल में उसके साथ पढ़ती थी वो स्मिता .. वो चारो उसके बाज़ू में से ऊपर निकल गए..वो बस देखती ही रह गई..उसके मुँह से एक शब्द बाहर ही नहीं आ रहा था
आगे जा कर उसमे से एक पुरुष का ध्यान पीछे मीनू की और गया.. तभी मीनू ने पूछा " ये स्मिता ही है न ?" उसमे से एक पुरुष ने जवाब दिया" हां पर मैंने आपको पहचाना नहीं.."
मीनू ने जवाब दिया " मै और स्मिता स्कूल में साथ में पढ़ते थे.पर उसे ये क्या हुआ है..?"
वो पुरुष ने जवाब दिया " अगर आपको वक्त है तो १० मिनिट ठहरिये ,,मै स्मिता को डॉक्टर के रूम में छोड़कर आऊ.
मीनू ने कहा" ठीक है मै इंतजार कर रही हूँ "
वो तीनों वापस स्मिता को लेकर चलने लगे..
वही ऊपर जा के मीनू एक सीट पर बैठ गई..और उसे अपने स्कूल के दिन याद आ गए.. टीचर को परेशान करना स्मिता का सबसे बड़ा शौक था..सबकी नक़ल करना उसे बखूबी आता था...उसके साथ रजा के दिनों में जुहू बीच पर जाना या पिक्चर देखने जाना और मस्ती करना ये अलग ही बात थी. स्कूलका जीवन ख़तम हुआ और कॉलेज में दोनों की अलग लाइन थी तो अलग कॉलेज में दाख़िला मिला..और जिंदगी में नए दोस्त आ गए..और पुराने दोस्तों को भूलते गए .आज मीनू को अफ़सोस हो रहा था की हम क्यों पुराने दोस्तों की खबर नहीं लेते.. .
अब i वो सोच ही रही थी की बात करने वाला पुरुष जो स्मिता के साथ था वो उसके करीब आया..उसके बाजू में बैठा और उसने बोलने का शरु किया.." मै तो आपको नहीं पहचानता.. पर आपने कहा की स्मिता आपकी स्कूल की दोस्त हैं ....
स्मिता पिछले २० साल से इस हालात से गुज़र रही है.. उसे खुद का भी कोई होश नहीं है..वो क्या कर रही है उसे कुछ पता नहीं चलता..न वो किसीको मुझे भी नहीं पहचानती ..मै उसका पति समीर हूँ
मीनू ने बीच मे ही प्रश्न पूछ लिया की "ऐसा हुआ कैसे?"
समीर ने कहा " हमारी शादी के एक साल में हमें एक बेटा हुआ .. बहुत खुश थी स्मिता..की पहली ही बार में भगवान् ने उसे बेटा दे दिया..पर डेढ़ साल बीतने पर पता चला की बेटा सुन नहीं सकता.फिर पता चला वो बोल भी नहीं सकता..तब तक हमें दूसरा बच्चा होने वाला था.. अब वो दूसरे बच्चे की आशा में जी रही थी..
नौ महीने के बाद दूसरा बेटा आया.. पहले ही दिन से वो उसके आजू बाज़ू बस आवाज करके देख रही थी की वो सुन सकता है या नहीं..पर हमारी किस्मत ख़राब की दूसरे बेटे को भी वो ही तकलीफ आई..और जब स्मिता को ये बात का पता चला वो टूट गई..
और ऐसी बीमार पड़ी की बस वो खुद को ही भूल गई.."
मीनू ने पूछा " तो क्या इस रोग का कोई इलाज नहीं है.."
समीर ने कहा " २० साल से तो मै सिर्फ ये ही काम कर रहा हूँ पर कोई फर्क नहीं..ये जो मेरे साथ थे वो हमारे दो बेटे है..जो बोल और सुन नहीं सकते..पर आज उनकी शादी भी हो गई है..पर मुझे मेरी पत्नी वापस नहीं मिली.."
तभी ही डॉक्टर .ने समीर को आवाज़ दी और कमरे में बुलाया.समीर ने तुरंत एक पेपर में कुछ लिखा और मीनू को देते हुए कहा" ये हमारा पता है, कभी हो सके तो हमारे घर स्मिता के पास बैठने शायद आपको देखकर उसे आपकी स्कूल की बाते याद आ जाए और वो ठीक हो जाए.." इतना कह कर वो डॉक्टर के पास चला गया..
पता हाथ में पकडे मीनू सोच रही थी की कैसा इंसान है ये..खुद ही कहता है की कोई इलाज ही नहीं है..और खुद ही और एक नई आशा को खुद के मन में जन्म दे के गया..शायद ये ही मानव मात्र का स्वभाव है..